भोपाल। सपाक्स ने सरकार पर जनता की मेहनत की कमाई का दुरूपयोग करने के आरोप लगाए हैं। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे पदोन्नति में आरक्षण के केस में महँगे वकीलों से पैरवी कराकर सरकार व्यर्थ का पैसा लुटा रही है। विधायक सुरेन्द्र सिंह बघेल के विधानसभा प्रश्न (क्रमांक 1157) के उत्तर में सरकार ने स्वीकार किया कि "पदोन्नति में आरक्षण" बरकरार रखने के लिये मान सर्वोच्च न्यायालय में सरकार द्वारा मान उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध की गई अपील में सरकार का पक्ष रखने के लिये कुल 15 वकील लगाये हैं। जिनमें शासकीय वकीलों के अतिरिक्त 8-निजी वकील भी हैं। 6-वकीलों को 30 जनवरी 2017 तक सरकार कुल 63.20 लाख का भुगतान कर चुकी है। इनमें से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और गोपाल सुब्रमण्यम, जिन्हें 10.00 लाख व रु. 9.70 लाख का भुगतान किया गया है। जो कभी भी सरकार के लिये न्यायालय में खड़े भी नहीं हुए।
सपाक्स का कहना है कि प्रकरण में अभी तक 8-बार हुई कोर्ट की पेशी में जो भी वकील उपस्थित हुए उन्होंने हर बार प्रकरण की सुनवाई बढ़ाने की ही जिरह की न कि प्रकरण में निर्णय के लिये बहस शुरू करने की। आश्चर्यजनक है कि सरकार निर्णय नहीं चाहती बल्कि निर्णय को टालने की पहल में जनता की गाड़ी कमाई के लाखों रुपये लुटा रही है।
प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि क्या सरकार को शासकीय वकीलों की क्षमताओं पर विश्वास नहीं है? यदि ऐसा है तो अन्य प्रकरणों में जिनमें सरकार हारी है, किसकी जिम्मेदारी है? उच्च न्यायालय में इस प्रकरण में स्वयं पुरुशेँद्र कौरव, अतिरिक्त महाढिवक्ता सरकार की ओर से लड़े थे|
हजारों कर्मचारी इस प्रकरण के लम्बित रहने से बगैर पदोन्नति सेवानिवृत हो चुके हैं. फ़िर भी सरकार प्रकरण में निर्णय की पहल न करते हुए निरंतर इसे टालने की पहल ही कर रही है. स्थिति यहाँ तक आ चुकी है कि महत्वपूर्ण पदों पर भी सरकार संविदा पर सेवानिवृत अधिकारियों की सेवायें लेने को मजबूर है. ऐसे में प्रशासनिक हालातों की कल्पना स्वतः की जा सकती है|