NLIU के खिलाफ फौरम का फैसला, छात्रा को प्रताड़ित करने का मामला

भोपाल। छात्रा की फीस रिफंड न करने और उसके लिए मानसिक रूप से प्रताड़ित किए जाने के मामले में उपभोक्ता फोरम की बेंच ने नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी (एनएलआईयू) के खिलाफ फैसला सुनाया। फोरम ने कहा कि जब छात्रा ने पढ़ाई ही नहीं की तो यूनिवर्सिटी फीस रिफंड क्यों नहीं कर रही है, जबकि यूजीसी के निर्देश हैं कि कोई भी शैक्षणिक संस्थान छात्रों के ऑरिजनल दस्तावेज अपने पास नहीं रख सकता। फोरम ने आदेश दिया है कि एनएलआईयू न केवल छात्र की फीस वापस करे साथ ही हर्जाना भी दे। 

उपभोक्ता फोरम में आरुषि गोयल ने वर्ष 2012 में शिकायत की थी । आरुषि के एडवोकेट दीपक श्रीवास्तव ने बताया कि उनकी क्लाइंट आरुषि ने कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट क्लेट की परीक्षा पास की थी। वरीयता के आधार पर उसने एनएलआईयू में एडमिशन लिया था।इसके लिए उसने यूनिवर्सिटी में 74,600 जमा किए थे। कुछ दिन बाद ही बेहतर अवसर मिलने पर आरुषि ने दिल्ली लॉ यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया। सीट छोड़ने पर उसने एनएलआईयू फीस वापस करने के लिए आवेदन दिया तो यूनिवर्सिटी ने केवल 15 हजार रुपए वापस किए। शेष राशि देने से इंकार कर दिया। इस पर आरुषि ने फोरम में शिकायत की। 

तीन साल चले इस मामले में विवि की ओर से एडवोकेट अजय दुबे ने राशि वापस न करने के संबंध में पक्ष रखा, लेकिन फोरम ने उनके पक्ष को नकार दिया। फोरम के अध्यक्ष पीके प्राण सदस्य सुनील श्रीवास्तव, डॉ. मोनिका मलिक की बैंच ने उपभोक्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि यूजीसी के स्पष्ट निर्देश है कि यदि छात्र कोर्स शुरू होने के पहले सीट छोड़ता है तो वेटिंग लिस्ट वाले छात्र को खाली हुई सीट पर एडमिशन देना होगा। वहीं छात्र को 1000 तक प्रोसेसिंग फीस काटकर बाकी की फीस वापस करनी होगी। 

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