सी बबल्स: भारत में भी ऐसा सोचा जा सकता है

राकेश दुबे@प्रतिदिन। जिन शहरों के बीच नदी या बड़े तालाब हैं ,फ्रांस के एक स्टार्टअप ने उनमें ट्रैफिक जाम का अच्छा तोड़ निकाला है यह इस दृष्टि से भी बेहतर है कि इसका लाभ लेने के लिए छोटी नदियां संरक्षित कर उनका कारगर इस्तेमाल किया जा सकता है। इस स्टार्टअप ने एक ऐसी ‘वाटर टैक्सी’ ईजाद की है, जो बैटरी चालित होगी, पानी के करंट से उसकी सतह से कुछ इंच ऊपर दौड़ेगी और पूरी तरह तरह से पर्यावरण के अनुकूल होगी। इसमें छह लोग बैठ सकेंगे। उम्मीद है कि सी-बबल्स नाम का यह प्रयोग अगले कुछ महीनों में आकार लेकर पेरिस व लंदन जैसे शहरों को राहत देता दिखाई देगा। दूर से पेरिस के बारे में जितनी भी सुंदर धारणा बने, सच यही है कि पेरिस ट्रैफिक जाम के मामले में फ्रांस के सबसे खराब शहरों में शुमार है।  लंदन की कहानी इससे भी खराब है। इसे यूरोप में जाम का चैंपियन कहा जाता है। यहां तो एक चालक के औसतन 101 घंटे या सप्ताह के तीन से चार दिन जाम से जूझते हुए बीत जाते हैं। यह सब तब है, जब ये शहर ट्रैफिक जाम के मुक्ति के तमाम साधन आजमा चुके हैं। ऐसे में, नई खोजें ही कारगर समाधान दे सकती हैं।

सवाल है कि हमारे देश में ऐसे इनोवेशन सामने क्यों नहीं आ रहे? इस सवाल को उलटकर देखें, तो जो इनोवेशन सामने आ रहे हैं, हम उन्हें भी स्वीकार नहीं कर रहे। भारत जैसे देश में, जहां ‘स्थायी जाम और तात्कालिक समाधान’ की रीति पर ज्यादातर काम होता रहा हो, वहां कुछ नया सोचने की जरूरत है। सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायर्नमेंट ने हर वर्ष बढ़ते वाहनों पर अंकुश लगाने, सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट के इस्तेमाल पर इंसेंटिव देने के साथ यह भी सुझाव दिया था कि टाउनशिप ऐसी डेवलप की जाएं, जिनमें हर तरह की सुविधाएं हों और लोगों को बेवजह हर चीज के लिए बाहर न भागना पड़े। दिल्ली में ऑड-ईवन फॉर्मूला भी ऐसी ही एक ईजाद था। दुर्भाग्य से इनमें से ज्यादातर सुझाव लागू करने के बारे में सोचा भी न गया और जिन्हें लागू करने के अच्छे नतीजे आए, उन्हें भी नामालूम वजहों से स्थायी नहीं किया जा सका।

अब सी-बबल्स को ही लें। इनके संचालन में न तो पर्यावरण को कोई चुनौती मिल रही है, न जलीय जीवन को। यह सोच इसलिए भी कारगर दिखती है कि हमारे शहर ट्रैफिक के लिहाज से दिन-ब-दिन ज्यादा से ज्यादा तंग होते जा रहे हैं। सड़कों और जमीन पर तो जगह बची नहीं या बचेगी नहीं। ऐसे में, जलमार्गों का दोहन नई राह दिखा सकता है। ऐसे प्रयोग वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, पटना, भागलपुर, लखनऊ जैसे घनी अबादी वाले शहरों में भी कारगर हो सकते हैं, जहां सड़कें सिमटती गई हैं और जलमार्ग की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। लखनऊ, जहां रिवर फ्रंट बनाने के लिए गोमती में पानी लाने का प्रयोग कारगर हो सकता है, वहीं गोमती में वाटर टैक्सी का प्रयोग भी नए आयाम गढ़ सकता है। ऐसे प्रयोगों के लिए स्थानीय स्तर पर औद्योगिक घरानों को जोड़ने की पहल भी कारगर हो सकती है। दरअसल, अब अपने आस-पास के माहौल और हमारे शहरों की संरचना के अनुरूप ऐसी ही नई योजनाएं तैयार करने का वक्त है। हमारे नए टेक्नोक्रेट, युवा विज्ञानी इसमें मददगार हो सकते हैं, बशर्ते उनके प्रयोगों को ठंडे बस्ते में न डालकर, बड़ा स्पेस दिया जाए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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