हम आरक्षण के युक्तियुक्तकरण की माँग कर रहे हैं

अजय जैन। नववर्ष में आरक्षण के मुद्दे पर कुछ कहना शुरू करूँ उसके पहले सिँहावलोकन आवश्यक है। गत वर्ष के वृहद परिदृश्य में देखें तो यह आकलन गलत नहीं कि अब तक की यात्रा अत्यंत सुखद और आशाओं से अधिक फलदायी रही। न सिर्फ हम जन्मे बल्कि साल बीतते-बीतते हम अपने सहोदर के साथ हैं। 

राष्ट्रीय परिदृश्य में मुद्दे पर गंभीर शुरुआत बिहार चुनाव की बिसात से हुई, जब 'आरएसएस प्रमुख' ने स्वतंत्र भारत में पहली बार 'आरक्षण की दवा' के प्रभाव के आकलन की बात की। यह देश के किसी भी प्रमुख संगठन (संगठन प्रत्क्षयता राजनैतिक न सही) का आरक्षण को लेकर पहला खुला संतुलित कथन था अन्यथा इस विषय पर कोई राजनैतिक दल ऐसे विचार सार्वजनिक कर अपनी कब्र को खोदना नहीं चाहता, आज भी! हालाँकि इसके बाद जो बिहार चुनाव में हुआ उसका ठीकरा अन्य गलतियों को ठान्पते हुये इसी मुद्दे पर फोड़ दिया गया।

सम्पूर्ण राजनैतिक संरक्षण के साथ जहाँ एक ओर धारा एक ही दिशा में निरंतर बढ़ी वहीँ दूसरी ओर न्यायालय सदैव आईना दिखाने का काम करता रहा। अफसोस बहुसंख्यक इसे अपनी! नियति मान सोता रहा। दिनांक 30.4.16 का ऐतिहासिक न्यायालयीन निर्णय इस सोती कौम को करवट बदलने का सामान मुहैया करा गया।

अचानक परिदृश्य बदला, सपाक्स के साथ-साथ कुछ और नये संगठन खड़े हुए। 12-जून को मान. मुख्यमंत्रीजी फ़िर उस धारा में बहे, जो हर राजनैतिक दल अपने अस्तित्व के लिये एकमात्र जरिया समझता है लेकिन इस बार शायद नियति कुछ और निश्चित किये थी! मुखर विरोध प्रदेश भर ने देखा। विरोध करने उतरे मौका परस्त संगठन समय के साथ अपनी गति को प्राप्त हुए और एकमात्र सजीव 'सपाक्स' प्रदेश भर में विस्तार के साथ आज भी मशाल लिये खड़ा है।

बीते वर्ष ने 'आरक्षण' को लेकर अलग अलग प्रदेशों में अलग अलग प्रतिक्रियाएँ देखीं। गुजरात 'पाटीदार आंदोलन' में जला। हरियाणा 'जाट आंदोलन' में। दोनों में परदे के पीछे राजनीति थी और दोनों ही भीषण विध्वंश के साक्षी बने। मप्र में हमारा विरोध था और वर्षान्त ने महाराष्ट्र में 'मराठा आंदोलन' खड़ा किया। बाद के दोनों पूर्णतः शांतिपूर्ण रहे और दोनों ही बगैर राजनीति के आयोजित! 

पर हम एक अर्थ में अलग हैं। हम न तो अपने लिये आरक्षण माँग रहे हैं न ही किसी वास्तविक हकदार का आरक्षण छीने जाने के पक्ष में हैं। हम आरक्षण के युक्तियुक्तकरण की माँग कर रहे हैं। हम उस विसंगति को समाप्त करने की माँग कर रहे हैं जिसने "आरक्षित वर्ग" में ही वह 'अभिजात्य' वर्ग पैदा कर दिया है जो अब 'मगरमच्छ' है और अपने ही वर्ग की मछलियों को खा रहा है, हमारा हक मारने के साथ-साथ!

दुनिया की नज़र में हम तेजी से विकसित हो रहे राष्ट्र हैं, महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर। क्या यह अजीब और हास्यास्पद नहीं कि सक्षम वर्ग अब अपने आप को 'आरक्षित' घोषित कराने की माँग करे? प्रतिभा अवसरों से वंचित हो और अक्षम उत्थान की आड़ में शिरोधार्य किये जायें तो यह स्वाभाविक है!
श्री अजय जैन सपाक्स के संस्थापक सदस्य हैं। 

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