प्रधानमंत्रीजी, आपकी नोटबंदी के कारण मेरा पोता मर गया

प्रधानमंत्रीजी, मेरे खाते में पैसे पड़े थे। मेरे पास डेबिट कार्ड भी था, पर 1100 रुपए न मिलने की वजह से मेरा पोता मर गया। प्रधानमंत्रीजी, मैंने दवा दुकानदार के आगे बहुत हाथ जोड़े कि डेबिट कार्ड से पैसे ले लो, पर उसने दवा नहीं दी। प्रधानमंत्रीजी, हार कर मेरा बेटा अपने बेटे की जान बचाने के लिए एटीएम के बाहर लगी लंबी लाइन में लग गया, पर भीड़ बहुत थी। प्रधानमंत्रीजी, मेरा पोता मर गया।'

यह कहानी है उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के विश्वनाथ मिश्रा की। विश्वनाथ मिश्रा डेबिट कार्ड से पेमेंट लेने के लिए दवा दुकानदार से मिन्नतें करते रहे। उनका बेटा एटीएम की लाइन में लगा रहा पर पैसे नहीं मिले और मासूम की जान चली गई। 

बच्चे की उम्र तीन दिन थी, पर इन तीन दिनों में ही बच्चे ने सबका मन मोह लिया था। उसकी आंखें बहुत सुंदर थी, पर अब वह आंखें बंद हो गई हैं। जो दादा उसे अपनी गोद में खिलाते थे, उन्होंने अपने उन्हीं हाथों से उसे जमीन में दफना दिया है। तीन दिन के मासूम पोते के लिए दवा लेने मेडिकल स्टोर पर गए दादा को मेडिकल स्टोर वाले ने डेबिट कार्ड या नेट से भुगतान लेने से साफ मना कर दिया था। 

शहर के नवयुग मेडिकल सेंटर पर विश्वनाथ मिश्रा 30 नवंबर को अपनी बहू को लेकर आए, जहां उसी दिन ऑपरेशन से बेटा पैदा हुआ। दो दिन सब कुछ ठीक रहा, मगर तीसरे दिन बच्चे की तबियत खराब होने लगी, तो परिवार ने बालरोग विशेषज्ञ डॉक्टर एसपी चौधरी से बच्चे को दिखाया।

देर रात जब बच्चे के पिता व दादा डॉक्टर एसपी चौधरी के पास पहुंचे, तो डॉक्टर ने तुरंत दवा और सुई लाने को कहा। पर्ची पर डॉक्टर की लिखी दवा लेने के लिए नर्सिंग होम में ही मौजूद मेडिकल स्टोर पर जब यह परिवार पहुंचा तो दवा दुकानदार ने कार्ड से भुगतान लेने से मना कर दिया। 

नेट बैंकिग से पेमेंट लेने को तैयार नहीं हुआ। थक हार कर जब मासूम के परिजन अन्य मेडिकल स्टोर पर दवा लेने गए, तो पता चला कि वह दवा सिर्फ उन्हीं डॉक्टर के नर्सिंग होम पर मिलेगी। अंत में मजबूर होकर बच्चे के पिता एटीएम के लाईन में पहुंचे। वहां भारी भीड़ थी। जब तक उनकी बारी आती, मासूम की सांसे थम गई।  
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