राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश में अजूबे निर्णय होते हैं। निर्णय के प्रभाव और उसके पूर्व परिदृश्य को ध्यान में रखना तो लगभग अप्रासंगिक होता जा रहा है। अपने को प्रदेश के बच्चों का मामा कहने में गौरवान्वित महसूस करने वाले प्रदेश के मुखिया स्कुलो में जाकर अर्जुन के लक्ष्यवेध की कहानी सुनते है, पर उनकी दृष्टि से तो पूरी भीमकाय चिड़िया “शिक्षा” का ही लोप हो रहा है। ऐसे निर्णय उन्होंने ले डाले है।
एक राष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक प्रदेश के चार हजार से अधिक स्कूलों में शिक्षक ही नहीं है। बिना शिक्षकों के स्कूल चलाने में मध्यप्रदेश अव्वल आया है। इसके विपरीत मध्यप्रदेश सरकार 2017-18 से प्रदेश के स्कूलों में एनसीआरटी का पाठ्यक्रम लागू करने जा रही है और उसके लिए मुफ्त किताबे भी तैयार हो रही है। सवाल यह है की स्कूल है, तो भवन नहीं, भवन है तो शिक्षक नहीं। यह तो सर्व ज्ञात तथ्य है बड़ा सवाल मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल के अस्तित्व और उसके द्वारा प्रदेश में चलाये जा रहे पाठ्यक्रमो और परीक्षाओं का है। जब सब एनसीइआरटी का होगा तो इनका क्या होगा ? अचार भी नही डल सकता।
अभी प्रदेश के हाल यह है कि लोकसभा में मानव संसाधन विभाग की एक रिपोर्ट प्रस्तुत हुई है। जिसमे देश भर के आंकड़े युनिफैइड डिस्ट्रिक्स इन्फ्रोमेशन सिस्टम फार एजुकेशन द्वरा एक रिपोर्ट के माध्यम से जुटाए गये है। इस रिपोर्ट के मुताबिक बिना मास्टर जी के स्कूल चलाने में मध्यप्रदेश अव्वल है। यहाँ के 4837 सरकारी स्कूलों में शिक्षक ही नहीं है। राज्य सरकार से जल्दी पद भरने को कहा है।
दूसरी और मध्यप्रदेश के मंत्रीमंडल के निर्णय के फलस्वरूप स्कूल शिक्षा विभाग ने 23 नवम्बर को एक आदेश निकाल कर कक्षा 1 से 7, कक्षा 9 और कक्षा 11 में 2017-18 से कुछ विषयों जिसमे विज्ञान भी शामिल है में एनसीआरटी के पाठ्यक्रम के अनुसार पुस्तके देने का निर्णय लिया है। अभी यह किताबे नहीं बनी है। ये किताबे मुफ्त में दी जानी है। मामा, स्कूल बताओ, मास्टरजी लाओ फिर किताब दिलाओ। कागज पर स्कूल और मास्टर जी चिड़िया की आँख की तरह मत बताओ। सच में प्रदेश में कोई अर्जुन बाण चलाये तो कैसे तो चिड़िया की आँख नहीं, चिड़िया ही नदारद है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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