रिजर्व बैंक की रिजर्व नीति

राकेश दुबे@प्रतिदिन। सब मान रहे थे कि बदलाव होगा, लेकिन रिजर्व बैंक ने फिलहाल नीति न बदलने की नीति पर चलना ही बेहतर समझा। नोटबंदी के बाद देश भर में जिस तरह की परेशानियां दिख रही हैं, आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ी हुई हैं, कुछ बाजार ठंडे हैं और कुछ क्षेत्रों में उत्पादन ठप है, उसे देखते हुए सबने यह उम्मीद बांधी थी कि अगली तिमाही के लिए जारी होने वाली क्रेडिट पॉलिसी में बैंक दरों में कम से कम चौथाई फीसदी की कटौती तो होगी ही। कुछ विश्लेषक तो आधा फीसदी की कटौती तक का अनुमान बांध रहे थे। हर जगह यही माना जा रहा था कि रिजर्व बैंक ही बाजार की इस सुस्ती को भंग कर सकता है। लेकिन रिजर्व बैंक ने सभी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

उसने न तो रैपो दरें बढ़ाईं, न रिवर्स रैपों दरों में कोई बदलाव किया, और न ही बैंकों के आवश्यक नकदी अनुपात से ही कोई छेड़छाड़ की। इससे बाजार किस कदर निराश हुआ, इसे शेयर बाजार की गति से भी समझा जा सकता है। नई नीति की घोषणा के तुरंत बाद बंबई शेयर बाजार के संवेदनशील सूचकांक ने 156 अंक तक गोता लगा दिया। बैंकिंग क्षेत्र की प्रतिक्रिया भी काफी तीखी रही। भारतीय स्टेट बैंक की चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य ने क्रेडिट पॉलिसी की इस घोषणा को नॉन इवेंट कहा, यानी ऐसी घटना, जिसमें दरअसल कुछ हुआ ही न हो। बुधवार को रिजर्व बैंक ने जितनी भी घोषणाएं कीं, उन पर इससे अच्छी टिप्पणी हो भी नहीं सकती।

वैसे देश भर में भले ही नोटबंदी से पड़ने वाले असर की गणनाएं हो रही हों, लेकिन रिजर्व बैंक शुरू से ही पूरे मामले को इस तरह पेश कर रहा है,जैसे इससे कोई बहुत बड़ा असर पड़ने वाला नहीं है। ऐसे में, अगर वह इस समय क्रेडिट पॉलिसी में कोई बड़ा बदलाव या विकास दर बढ़ाने के लिए कोई अतिरिक्त प्रोत्साहन देने की कोशिश करता, तो इसका अर्थ यही लगाया जाता कि वह कहीं न कहीं यह स्वीकार करता है कि नोटबंदी का नकारात्मक असर पड़ रहा है। लेकिन शायद यह अपने कहे की लाज रखने भर का मामला नहीं है। रिजर्व बैंक ने जो लेखा-जोखा पेश किया है, उसमें उसने चालू वित्त वर्ष की सालाना विकास दर में कमी की बात को स्वीकार किया है। इसके बावजूद उसका आकलन और अनुमान कहता है कि विकास दर सात फीसदी से ऊपर ही रहेगी। अपने लेखे-जोखे पर भरोसा करते हुए उसे बैंक दरों में कटौती करने या कर्ज को सस्ता व उदार बनाने की कोई जरूरत नहीं महसूस हुई।

आमतौर पर बैंक दरों में कटौती की उम्मीद या तो वे उद्योग करते हैं, जिन्हें उत्पादन बढ़ाने के लिए सस्ते कर्ज की जरूरत होती है, या फिर वे उपभोक्ता करते हैं, जिन्होंने होम लोन या किसी और तरह का कर्ज लिया है। उन्हें यह लालच होता है कि बैंक उनकी ब्याज दरें कम करके उनकी ईएमआई यानी कर्ज वापसी की किस्त घटा देंगे। लेकिन इस बार यह उम्मीद उद्योगों या उपभोक्ताओं की बजाय बैंकों द्वारा ज्यादा बांधी जा रही थी।

बड़े नोट बंद होने के बाद से बैंकों में लाखों करोड़ रुपये का धन जमा हो चुका है, यह सब तब हो रहा है, जब कर्ज की मांग बहुत कम हो गई है या फिर कुछ क्षेत्रों में तो लगभग खत्म ही हो गई है। बैंक ऐसी स्थिति में फंस गए हैं, जहां उनके पास ढेर सारे ताजा जमा धन का ब्याज देने की मजबूरी तो आ गई है, लेकिन ब्याज से कमाई के रास्ते में कुछ नहीं हो रहा। जाहिर है कि अगर रिजर्व बैंक अपनी दरों में कटौती करता, तो उन्हें इसमें कुछ राहत मिलती। हालांकि इस बार यह उम्मीद नहीं थी कि वे इस राहत को अपने ग्राहकों तक पहुंचाते। अब उन्हें भी आम लोगों की तरह ही स्थिति सामान्य होने का इंतजार करना होगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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