सरकारी स्कूल में नेता/अधिकारियों के बच्चे आए तो परेशानी होगी: शिवराज सिंह

भोपाल। सारे देश में यह मांग बार बार उठती है कि नेता और अधिकारी सरकारी अस्पतालों में इलाज क्यों नह़ीं कराते, नेता और अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढते। पिछले दिनों उत्तरप्रदेश हाईकोर्ट ने भी एक फैसले में कहा था कि नेता/​अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूल में अनिवार्य रूप से पढ़ाएं, परंतु मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इससे सहमत नहीं है। 

शिवराज सिंह चौहान ने अपने शासनकाल के 11 वर्ष पूरे होने पर संवाददाताओं से बातचीत में विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा है, "राजनेताओं और अफसरों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो बोझ और बढ़ेगा। राजधानी के एक होटल में 'प्रेस से मिलिए कार्यक्रम' में मंगलवार को चौहान द्वारा राज्य की स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा सुधार होने का दावा किए जाने पर जब पूछा गया कि क्या वजह है कि राज्य के राजनेता और अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ते और सरकारी अस्पतालों में इलाज क्यों नहीं कराते?

इस पर चौहान ने कहा, "अगर वे भी सरकारी स्कूलों में जाएंगे तो सरकारी स्कूलों पर बोझ और बढ़ जाएगा। जब चौहान को लगा कि वह कुछ गलत बोल गए हैं तो उन्होंने अपनी बात संभालते हुए कहा, "जहां तक आपका भाव है, जो आपका भाव है उसको ध्यान में रखकर शिक्षा की गुणवत्ता और कैसे ठीक की जा सकती है, उस पर ध्यान देंगे।

शिक्षक विहीन स्कूल एक भी नहीं
उन्होंने राज्य में शिक्षक विहीन स्कूलों के आरोपों को नकारा और लेकिन इस बात को स्वीकारा कि राज्य के कई स्कूल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं।

पहले और भी बुरे हाल थे 
राज्य की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर चौहान ने कहा, "राज्य में पहले शिक्षा का बुरा हाल था, जिसे उन्होंने बदला है। उच्च माध्यमिक में 85 फीसदी अंक पाने वाले बच्चे निजी स्कूलों से ज्यादा सरकारी स्कूलों के हैं. जहां तक चिकित्सा का सवाल है, चिकित्सकों की कमी है, मगर नि:शुल्क दवा योजना शुरू की गई है. ह्रदय रोगी बच्चों के नि:शुल्क ऑपरेशन कराए जा रहे हैं."

पिछली सरकार से कम कर्ज है
राज्य पर लगातार बढ़ते कर्ज के सवाल पर चौहान ने कहा, "केंद्र सरकार द्वारा तय नियमों के अनुसार ही किसी राज्य को कर्ज लेने का अधिकार है, कोई भी राज्य अपनी जीडीपी का तीन प्रतिशत कर्ज के तौर पर ले सकता है. मध्य प्रदेश भी वही कर रहा है. पूर्ववर्ती सरकार के काल में तो 22 प्रतिशत राशि कर्ज के ब्याज पर जाती थी, मगर अब ऐसा नहीं है.

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