नोट बंदी : भारत में नहीं, कतार में हैं

राकेश दुबे@प्रतिदिन। नोटबंदी के फैसले के नौ दिन बाद भी देश के नागरिक कतार में हैंं। कतिपय मुद्दों पर भ्रम है, जिसे अच्छा नहीं कहा जा सकता। बीते कई दिनों में आते और बदलते आदेशों ने इस भ्रम को बढ़ाने का ही काम किया है। और इसका सबसे ज्यादा खामियाजा बैंक भुगत रहे हैं। बैंकों का शुक्रवार भी उस खबर के बाद असमंजस में बीता, जिसमें कहा गया कि निर्वाचन आयोग ने नोट बदलने की प्रक्रिया में उपभोक्ताओं की उंगली पर स्याही लगाने के फैसले पर ऐतराज जताया है, हालांकि इस खबर का असर यह हुआ कि वित्त मंत्रालय को बाकायदा स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा कि नोट बदलने में स्याही लगाने का निर्देश चुनाव आयोग से सलाह-मशविरे के बाद ही जारी हुआ, इसलिए आयोग के इस पर ऐतराज जैसी कोई बात ही नहीं है। 

सच तो यह है कि बुधवार को स्याही लगाने के फैसले की घोषणा के साथ ही इस पर बहस शुरू हो गई थी। बहस के सिरे में एक तरफ जहां कल कई राज्यों के उपचुनावों में इसके कारण भ्रम फैलने की चर्चा थी, तो दूसरी ओर बैंककर्मियों की बढ़ने वाली दिक्कतों की बात। कहा गया कि पहले से ही काम के दबाव में आ चुके बैंंक इससे अतिरिक्त दबाव में आ जाएंगे। बैंकों के सामने सरकार के निर्देश और स्याही की अनुपलब्धता का संकट था। यही कारण है कि निर्णय-अनिर्णय के बीच कहीं ‘धोबी इंक’ इस्तेमाल में आ गई, तो कहीं मार्कर का इस्तेमाल शुरू हो गया।

नोटबंदी का फैसला जिस तरह अचानक हुआ, उसकी भले ही किसी स्तर पर आलोचना हुई हो, लेकिन यह सच है कि ऐसेबड़े फैसले प्रभावित होने वालों को संभलने का मौका दिए बिना अचानक ही लिए जाते हैं। यह फैसला ऐसा ही था, पर यह भी सच है कि इसके क्रियान्वयन के तरीके बहुत सुविचारित नहीं थे, जिनके कारण व्यावहारिक दिक्कतें आईं। बैंकों और एटीएम के बाहर लगी लाइनों का अब तक न सिमटना भी इसी का नतीजा है। एटीएम पर्याप्त नोट नहीं दे पा रहे और बैंकों से नोट बदलने की संख्या भी बढ़ती-घटती रही। बैंकों का वक्त यह सोचने में भी जाया हो रहा है कि अगला नियम क्या होगा और उन्हें इसके लिए क्या कदम उठाने होंगे। स्याही लगने से करेंसी बदलने की राशि का घटना-बढ़ना इसी कड़ी में है।

इन दिनों में बैंकिंग व्यवस्था जिस तरह सिर्फ करेंसी वितरण में जुटी दिखाई दे रही है, उसका असर इसके अपने वित्तीय ढांचे पर भी पड़ा है। बैंकों के अपने दूसरे कई काम बंद हैं। जमा तो अथाह बढ़ा, लेकिन यह अथाह जमा तभी काम का होगा, जब यह रोटेशन में आएगा। रोटेशन में लेन के लिए फिर से लाइन का दौर शुरू होगा। प्रवासी भारतीय मजाक करने लगे हैं। ”पूछते है कहाँ हो? कतार में तो नहीं खड़े हो।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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