राकेश दुबे@प्रतिदिन। विश्व बैंक हर कुछ समय के बाद यह सुझाता है कि राज्यों को अपने यहां कौन-कौन से आर्थिक सुधार करने चाहिए। बाद में राज्यों द्वारा किए गए सुधारों के आधार पर उनकी रैंकिंग तैयार की जाती है। यह मामला सिर्फ सुधार का नहीं है। निवेशक जब कोई बड़ी पूंजी लगाने को तैयार होता है, तो उसे यह तय करना होता है कि कौन सी जगह निवेश के लिहाज से सबसे उपयुक्त है। ऐसे में, इस तरह की रैंकिंग उसके बहुत काम आती है। जाहिर है, इस रैंकिंग में जो सबसे ऊपर के राज्य हैं, वहां निवेश होने की सबसे ज्यादा संभावना रहती है। मध्य प्रदेश कहाँ है। शायद मुख्यमंत्री भी नहीं जानते। सरकार भले ही कुछ भी कहे, उद्योग नही आ रहे हैं।
इस बार की रैंकिंग में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सबसे ऊपर हैं। नंबर एक के लिए उनमें टाई हो गया है, जबकि पिछले साल तक नंबर एक पर रहने वाला गुजरात इस बार नंबर तीन पर पहुंच गया है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने नए उद्योगों के लिए जो व्यवस्था की है, वे महत्वपूर्ण तो हैं ही, साथ ही वे ऐसी हैं कि दूसरे राज्य उनसे सबक ले सकते हैं। मसलन, तेलंगाना में नया उद्योग लगाने की तमाम तरह की इजाजत लेने के लिए किसी उद्योगपति को सरकारी अधिकारियों से मिलने की जरूरत नहीं है, ये सारा काम ऑनलाइन अपने आप हो जाता है। मध्यप्रदेश में उद्योगपतियों को अब भी मंत्रियों और अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि बिहार से अलग हुआ झारखंड और उत्तर प्रदेश से अलग हुआ उत्तराखंड पहले दस राज्यों में स्थान बनाने में कामयाब रहे। उत्तर प्रदेश का एक और पड़ोसी सूबा हरियाणा भी इन दस में शामिल है। उत्तराखंड तो पिछले साल 23वें स्थान पर था और इस साल वह नौवें स्थान पर पहुंच गया, जबकि हरियाणा 14वें स्थान से छलांग मारते हुए छठे स्थान पर जा पहुंचा। वैसे यह मामला ऐतिहासिक कारणों का उतना नहीं है, जितना कि मौजूदा समय की जरूरतों के हिसाब से आर्थिक सुधार लागू करने का है। आर्थिक सुधारों को लागू करने और उद्योगों की राह से बाधाएं दूर करने के लिए जिस नई सोच और प्रतिबद्धता की जरूरत होती है, उसमें अतीत कोई भूमिका नहीं निभाता है। तेलंगाना, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने यह दिखाया है कि ईमानदार कोशिशों की बदौलत राज्य की छवि बदली जा सकती है। यहाँ अर्थात मध्य प्रदेश में भी कुछ कीजिये।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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