सर्वे रिपोर्ट: नोटबंदी मामले में भाजपाई ही मोदी के साथ नहीं

नईदिल्ली। नोटबंदी मामले में भाजपा के कार्यकर्ता ही मोदी के फैसले का समर्थन नहीं कर रहे हैं। यह नतीजा मोदी द्वारा कराए गए सर्वे में सामने आया है। कड़वा सच यही है। जो नतीजे तमाम मीडिया संस्थानों में प्रकाशित हो रहे हैं वो आधा सच है। जिसे आप प्रायोजित भी कह सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के अपने फैसले पर मंगलवार को लोगों से राय मांगी कि द्वारा लिया गया फैसला सही है या गलत। इसके लिए पीएम मोदी ने नरेंद्र मोदी ऐप पर लोगों से एक सर्वे में हिस्सा लेने और 10 सवालों के जवाब देने को कहा था। सर्वे के नतीजे खुद पीएम मोदी ने बुधवार को ट्वीट कर बताए। 

प्रतिशत में आंकड़े मोदी के साथ 
नतीजों के मुताबिक, 98 प्रतिशत लोगों ने कहा कि भारत में कालाधन मौजूद है। 90 प्रतिशत लोगों ने 500 और 1000 के नोट बैन करने के मोदी सरकार के फैसले का समर्थन किया। 43 प्रतिशत लोगों ने कहा कि नोटबंदी के फैसले से हमें कोई तकलीफ नहीं हुई। 48 प्रतिशत लोगों ने कहा कि हमें दिक्कत तो हुई, लेकिन एक बड़े कदम के आगे इन दिक्कतों को झेलने के लिए तैयार हैं। 

99 प्रतिशत लोगों ने कहा कि भारत में भ्रष्टाचार और कालाधन की दिक्कत है जिससे लड़ने और उखाड़ फेंकने की जरूरत है। 92 प्रतिशत लोगों ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी सरकार की कोशिशें बेहद अच्छी हैं। 92 प्रतिशत लोगों ने माना कि नोटबंदी से कालाधन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद को रोकने में मदद मिलेगी। 

कुलयोग के आंकड़े नतीजे ही पलट रहे हैं
अब बात करते हैं कुलयोग की। मोदी की अपील हर मीडिया प्लेटफार्म पर थी। सोशल मीडिया पर लगातार वायरल हो रही थी। अत: यह नहीं कहा जा सकता कि मोदी के सर्वे का लोगों को पता नहीं चला। 
भारत में 1 करोड़ भाजपा कार्यकर्ता हैं जो आॅनलाइन होते हैं। इन्होने भाजपा की आॅनलाइन सदस्यता हासिल की है। 
भारत में 14 करोड़ एक्टिव इंटरनेट यूजर्स हैं जो प्रतिदिन 8 घंटे से ज्यादा आॅनलाइन होते हैंं। 
मोदी के इस सर्वे में मात्र 5 लाख लोगों ने भाग लिया। 
यह संख्या भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ताओं की कुल संख्या से भी बहुत कम है। 
अब नतीजा यह निकलता है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने भी मोदी के फैसले का समर्थन नहीं किया। 
इस सर्वे में जो 5 लाख लोग दिखाई दे रहे हैं वो आम जनता नहीं बल्कि आरएसएस और भाजपा से जुड़े लोग ही हैं। इनमें से भी 10 प्रतिशत ऐसे हैं जिन्होंने खुलकर मोदी का विरोध कर दिया।
125 करोड़ लोगों से पूछे गए सवाल का जवाब यदि मात्र 5 लाख लोग ही देते हैं तो क्या ऐसी परीक्षा को रद्द नहीं कर दिया जाना चाहिए। जिन लोगों ने जवाब दाखिल किए वो कुल आबादी का 0.01 प्रतिशत भी नहीं हैं। ऐसे सर्वे के नतीजों को भारत का नतीजा तो कतई नहीं कहा जा सकता। 

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