शिवराज ने आतंकी मारे हैं ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। सिमी और इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े जो आठ आतंकवादी आईएसओ प्राप्त भोपाल की केंद्रीय जेल से भाग निकले थे, उन्हें मध्य प्रदेश पुलिस और उसके आतंकवाद विरोधी दस्ते ने मार गिराया। अगर ये आतंकवादी किसी तरह बच निकलते, तो एक बहुत बड़ी आशंका देश पर मंडराती रहती। इस लिहाज से उन्हें मार गिराना एक बहुत बड़ी सफलता है, लेकिन फिलहाल चर्चा का विषय यह सफलता नहीं, बल्कि वह विफलता है, जिसे राजनीति ने खड़ा किया है और कर रही है। इन से दो बातें उछल रही है एक क्या एनकाउंटर फर्जी था दूसरा शिवराज महावीर है। दोनों ही बाते पुलिस के मनोबल को तोड़ने वाली हैं। कांग्रेस को इसमें षड्यंत्र और भाजपा को वाहवाही नजर आ रही है।

इन बातों के आलावा यह पूरा घटनाक्रम अपने पीछे कई सवाल भी छोड़ गया है। जेल से भाग निकलने और फिर पुलिस से मुठभेड़ तक जो कुछ हुआ, वह बताता है कि ये आतंकवादी अकेले नहीं थे और किसी ने उनकी मदद भी की। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जेल से भाग निकलने के बाद उनके पास हथियार कहां से आए? पुलिस ने मुठभेड़ के बाद जब उनकी तलाशी ली, तो उनके पास से सूखे मेवे बरामद हुए। यानी उन्होंने इस बात का पूरा इंतजाम कर रखा था कि अगर उन्हें कई दिन छिपकर या निर्जन इलाकों में बिताने पड़े, तो उनके सामने खाने की समस्या न आए। ये मेवे उनके पास कहां से आए? 

जो आतंकवादी भाग निकले थे, पुलिस ने सभी को मार गिराया, यानी कुछ घंटे बाद जब मुठभेड़ हुई, तो उनका मददगार वहां नहीं था। तो क्या उन्हें यह मदद जेल के अंदर से मिली थी या उसके ठीक बाहर? ऐसे ढेर सारे सवाल हैं, जो इस मुठभेड़ को लेकर उठाए जा रहे हैं और ये बताते हैं कि लापरवाही और चूक वास्तव में कितनी बड़ी है? यह चूक इसलिए भी अक्षम्य है कि तीन साल पहले मध्य प्रदेश की खंडवा जेल से भी सात आतंकवादी दीवार तोड़कर भाग निकले थे।

ये सारे सवाल एक ही तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि हमारे पास आतंकवादियों से निपटने को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है। उन्हें कैसी जेलों में कैसे रखा जाए यह सवाल तो है ही, साथ ही यह भी कि उनके खिलाफ किस तरह मुकदमे चलाए जाएं, ताकि जल्दी से जल्दी फैसले हो सकें और उन्हें सजा दी जा सके।इसलिए ऐसे मामलों के लिए हमें आक्रोश, भावनाओं और राजनीति की नहीं, स्पष्ट नीति की जरूरत है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !