भोपाल। कुछ दिनों पहले एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर का आॅडियो वायरल हुआ था। सीनियर डॉक्टर अपने जूनियर को निर्देशित कर रहा था कि 'मरीज को भर्ती कर लो और मार दो'। कानून की किताबों में भले ही इसे इलाज में लापरवाही के कारण मौत का मामला माना जाए लेकिन असल में यह हत्या ही है। भोपाल के सरकारी अस्पतालों में पिछले 7 महीने में 30 प्रसूताओं की मौत का मामला सामने आया है। इसमें से कितनी बीमारी या दूसरे मेडिकल कारणों से से मरीं और कितनी डॉक्टरों के गुस्से का शिकार होकर इलाज ना मिलने के कारण मारी गईं, जांच की जद में आ गया है।
कलेक्टर निशांत वरवड़े ने इस संबंध में भोपाल की सीएमएचओ डॉ.वीणा सिन्हा से रिपोर्ट मांगी है। कलेक्टर ने इसकी पड़ताल करने को कहा है कि इन महिलाओं की प्रसव पूर्व जांचें (एनएनसी) की गई या नहीं। वे सोमवार को जिला स्वास्थ्य समिति की बैठक में कार्यक्रमों की समीक्षा कर रहे थे।
उन्होंने भोपाल जिले में माताओं की मौत को लेकर नाराजगी जाहिर की है। अप्रैल से अब तक 30 माताओं की मौत प्रसव के बाद या उसके पहले हो गई है। दूसरे जिले के करीब 25 माताओं की मौत भोपाल में हुई है। अन्य सालों की मुकाबले यह संख्या काफी ज्यादा है। इस पर कलेक्टर ने कहा कि एक भी माता की मौत नहीं होनी चाहिए। इसमें लापरवाही करने वाले डॉक्टर व अन्य चिकित्सकीय स्टाफ पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। हालॉकि, इस संबंध में सीएमएचओ डॉ. वीणा सिन्हा ने कहा कि ब्लड प्रेशर, एक्लेम्सिया व दूसरी बीमारियों के चलते माताओं की मौत हुई है। कलेक्टर ने सभी बच्चों का टीकाकरण करने के लिए कहा है।
अप्रैल से अब तक 809 बच्चों की मौत
राजधानी में अप्रैल से अब तक 0 से 5 साल तक 809 बच्चों की मौत हो चुकी है। इसकी बड़ी वजह प्रसव पूर्व तीन जांचें नहीं होना, डिलीवरी के दौरान लेबर रूम में होने वाला संक्रमण, अस्पतालों में उपकरणों की कमी व समय पर सीजर डिलीवरी नहीं कराना है। कलेक्टर ने साफ कहा है गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व तीनों जांचें की जानी चाहिए।
मप्र में डॉक्टरों का स्वभाव उग्र हो गया है
यहां बता दें कि मप्र में डॉक्टरों का स्वभाव उग्र हो गया है। वो बात का बतंगड़ बनाते हैं और इलाज में लापरवाही करते हैं। परिजनों के सवालों पर भड़क उठते हैं। हाल ही में जेएएच ग्वालियर में डॉक्टर ने परिजन के सवाल पूछने पर बीमार वृद्धा को बिना इलाज के ही भगा दिया था। शिवपुरी कलेक्टर ने एक रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजी है। इसमें भी पुष्टि की गई है कि डॉक्टर अपने पेशे के प्रति गंभीर नहीं हैं एवं परिजनों की बातों पर भड़क जाते हैं। इलाज में लापरवाही बरतने लगते हैं।