भारत में इन दिनों यदि कोई पाकिस्तान के प्रति नरम रवैया अपनाए तो उसे सलाह दी जाती है कि वो भी पाकिस्तान चला जाए लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब महात्मा गांधी ने जनभावनाओं और सरकार की कूटनीति के खिलाफ जाकर पाकिस्तान की मदद की थी। इसके लिए वो आमरण अनशन पर चले गए थे, लेकिन तब भी पूरे देश में गांधी विरोधी प्रदर्शन हो रहे थे। लोगों को 'गांधी समाधि' मंजूर थी, पाकिस्तान का प्रेम नहीं, परंतु नेहरू सरकार तीसरे दिन झुक गई।
बात बंटवारे के वक्त की है। बंटवारे का फैसला होते ही जिन्ना ने अपना रुख बदलना शुरू कर दिया था। इसका भारत में काफी विरोध हो रहा था। जनता वैसे भी बंटवारे के पक्ष में नहीं थी। गांधी की कथित जिद के कारण यह संभव हो सका। भारत सरकार के खजाने से पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपए दिए गए। भारत, जिन्ना की मदद कर रहा था तब तक पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ कर दी।
बदले में भारत सरकार ने पाकिस्तान की मदद रोक दी। भारत के इस दांव ने पाकिस्तान को कंगाली की हद पर ला खड़ा कर दिया। कामचलाऊ एडवांस राशि खत्म हो चुकी थी और नौबत यह आ गई थी कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन में कटौती की जा रही थी। जिन्ना को तो बहुत बड़ा अपमान सहना पड़ा जब पाकिस्तान सरकार का ब्रिटिश ओवरसीज एयरवेज कारपोरेशन को दिया एक चेक बाउंस हो गया।
जिन्ना कश्मीर के मामले में पीछे हटने को तैयार नहीं था और पाकिस्तान कंगाल हो चुका था। तभी गांधीजी को जब पता चला कि नेहरू और पटेल ने पाकिस्तान का 55 करोड़ का भुगतान रोक दिया है तो वे बहुत नाराज हुए। उन्होंने दोनों नेताओं से कहा, पाकिस्तान को उसके हक वाला पैसा तुरंत दे दिया जाए, नहीं तो मुझे कुछ करना पड़ेगा। नेहरू-पटेल ने उन्हें पूरी स्थिति बताई, लेकिन वो अपनी जिद पर अड़े रहे।
सरदार पटेल ने जब साफ इंकार कर दिया तो गांधी ने 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन शुरू कर दिया। उम्र हो चुकी थी इसलिए उनकी स्थिति तेजी बिगड़ती गई। भारत में आम जनता को जब यह पता चला तो भी वो गांधी विरोधी प्रदर्शन करने लगे। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि गांधी आखिर पाकिस्तान के हक की बात क्यों कर रहे हैं, जबकि पाकिस्तान ने बंटवारे के नाम पर खून की नदियां बहा दीं थीं। भारत की सड़कों पर गांधी के खिलाफ मोर्चे भी निकले गए। नेहरू-पटेल समेत पूरी कैबिनेट गांधी की इस हठ के खिलाफ थी और जनता भी सरकार के साथ थी, लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा था। उपवास के तीसरे दिन गांधी की स्थिति बहुत बिगड़ गई। आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा। 15 जनवरी 1948 को सरकार की ओर से घोषणा की गई कि पाकिस्तान के 55 करोड़ रुपए जारी करने के आदेश दे दिए गए हैं।