इंदौर। जिन उद्योगपतियों पर बैंकों का हजारों करोड़ रुपया बकाया है, सरकार उन्हीं को निवेश के लिए बुला रही है। ऐसे डिफाल्टर उद्योगपतियों को प्रदेश में बुलाकर सरकार जनता के साथ धोखा कर रही है। उद्योगपतियों को कीमती जमीन आवंटित करने में भी नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है। इसके लिए कोई नीति भी नहीं बनाई गई।
हाई कोर्ट में सोमवार को यह दलील याचिकाकर्ता तपन भट्टाचार्य की ओर से वकील आनंद मोहन माथुर ने दी। इन्वेस्टर्स समिट के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सोमवार को डेढ़ घंटे से ज्यादा बहस हुई। दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस पीके जायसवाल और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया।
तेज विकास के लिए जरूरी
सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता सुनील जैन ने कहा कि इन्वेस्टर्स समिट का फैसला नीतिगत है। उद्योगीकरण और तेजी से विकास के लिए इस तरह की समिट जरूरी है। इनसे लगातार विकास हो रहा है। 10-12 साल में प्रदेश में तेजी से विकास हुआ है। इसलिए याचिका खारिज की जाए।
याचिका के अंतिम निराकरण के तहत हो समिट में लिए फैसले
वकील माथुर ने कहा कि हम इन्वेस्टर्स समिट पर रोक की मांग नहीं कर रहे, लेकिन इसमें लिए गए फैसलों को याचिका के अंतिम निराकरण के तहत रखा जाए। उन्होंने अतिरिक्त महाधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए कहा कि जब सरकार को नोटिस ही जारी नहीं हुए तो सरकार का पक्ष नहीं रखा जा सकता। ऐसे समिट आयोजित करने वाले सरकार पर कॉस्ट लगाई जाए। कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया।