सरकारी लैब में बनती थीं फर्जी जांच रिपोर्ट, लैब टेक्नीशियन जेल में

ग्वालियर। हेमसिंह की परेड स्थित सरकारी डिस्पेंसरी का लैब टेक्नीशियन रामकुमार शिवहरे लोकायुक्त की एक कार्रवाई में आय से अधिक संपत्ति जुटाने का दोषी पाया गया है। निश्चित रूप से यह काली कमाई उसने काम के दौरान ही जमा की होगी। सरकारी लैब में अतिरिक्त कमाई का प्रमुख जरिया फर्जी जांच रिपोर्ट ही हो सकतीं हैं। तो क्या जिन जांच रिपोर्टों पर डॉक्टरों ने इलाज किया, जो जांच रिपोर्ट न्यायालय में विभिन्न मामलों में संलग्न की गईं हैं, वो रिश्वत के बदले बनाई गईं फर्जी जांच रिपोर्ट हैं ? 

हेमसिंह की परेड स्थित डिस्पेंसरी में पदस्थ लैब टेक्नीशियन रामकुमार शिवहरे के खिलाफ लोकायुक्त को आय से अधिक संपत्ति की शिकायत मिली थी। वर्तमान में वह मुरैना सिविल अस्पताल में पदस्थ है। प्राथमिक जांच कर लोकायुक्त ने 21 अक्टूबर 2013 को रामकुमार के घर छापामार कार्रवाई की। इस कार्रवाई में लाखों रुपए की काली कमाई का खुलासा हुआ था। छापे के बाद मामले की जांच की गई। 10 जून 1981 से नवंबर 2012 के बीच लैब टेक्नीशियन के आय व व्यय की गणना की गई। इस गणना में रामकुमार शिवहरे की आय 39 लाख 81 हजार 140 रुपए हो रही थी, लेकिन उनके पास 1 करोड़ 82 लाख रुपए की संपत्ति मिली। इसमें से 1 करोड़ 42 लाख 49 हजार रुपए की संपत्ति अनुपातहीन थी। 

यह संपत्ति आय से 375 गुना अधिक निकली। विशेष लोक अभियोजक अरविंद श्रीवास्तव ने इस मामले में कोर्ट में चालान पेश किया। जेल जाने से बचने के लिए रामकुमार शिवहरे ने भी जमानत के लिए आवेदन पेश किया। कोर्ट ने इस आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरोपी को जमानत पर छोड़ा जाता है तो सबूतों से छेड़छ़ाड की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। अपराध की गंभीरता को देखते हुए आरोपी को जेल भेजना ही उचित होगा। भ्रष्टाचार की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपी को जेल भेज दिया गया। रामकुमार को वर्तमान में 20 हजार रुपए वेतन मिलता है।

लोकायुक्त को रामकुमार के घर से सात बैंक खाते, चार पहिया वाहन, कुलैथ में कृषि भूमि के दस्तावेज, जेवर, शहर में मकान और प्लॉट के दस्तावेज मिले थे। उन्होंने लड़की की शादी में 20 लाख रुपए से अधिक खर्च किया था। बेटे के मेडिकल कॉलेज में पढ़ने की जानकारी भी लोकायुक्त को मिली थी।

आरोपी का बयान
रामकुमार शिवहरे ने अपने बचाव में लोकायुक्त को बताया कि उनकी पत्नी को पिता से 4 बीघा जमीन मिली थी। 4 बीघा जमीन में जो फसल हुई, उससे मकान, कृषि भूमि, जेवर व अन्य संपत्तियां खरीदी हैं।

हमारा सवाल
हमारा सवाल यह है कि यदि राजकुमार शिवहरे ने शासकीय सेवा के दौरान काली कमाई जमा की है तो निश्चित रूप से वह रिश्वत के रूप में ही जुटाई गई होगी। एक लैब टेक्निशियन की अतिरिक्त कमाई फर्जी जांच रिपोर्ट बनाने पर ही हो सकती है। तो क्या इस आधार पर उन तमाम जांच रिपोर्टों को फर्जी माना जाना चाहिए जो राजकुमार ने बनाई और विभिन्न न्यायालयों में चल रहे प्रकरणों में प्रमाण के तौर पर संलग्न हैं। 

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