भोपाल। सीएम शिवराज सिंह चौहान मप्र मेें निवेश लाने के लिए हाड़तोड़ कोशिशें करते हैं। इंवेस्टर्स से मिलते हैं। बातें करते हैं, वादे करते हैं। एमओयू भी साइन हो जाता है और फिर सबकुछ फुर्र हो जाता है। इंदौर में होने जा रही ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2016 से पहले अब तक हुए तमाम प्रयासों की समीक्षा का दौर शुरू हो गया है। प्रशासनिक गलियारों में कहा जा रहा है कि इस फेलियर के पीछे सिर्फ एक ही नाम काफी है और वो हैं उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान।
सुबह सेवेरे के पत्रकार पंकज शुक्ला ने इसकी सराहनीय समीक्षा की है। वो लिखते हैं कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2014 में 9 अक्टूबर 2014 को ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर, इंदौर में आईटीसी के वाय.सी. देवेश्वर ने अपने संबोधन में कहा था कि ‘मुख्यमंत्रीजी आप जितना चाहेंगे हम उतना निवेश करेंगे। आप हमारी समस्याएं दूर करवा दीजिए। मैंने 10 हजार करोड़ के निवेश के लिए प्रस्ताव दिया है, लेकिन तीन साल से अधिक का समय हो गया हमें जमीन नहीं मिली है।’ आईटीसी के चेयरमैन देवेश्वर मप्र के मुखिया की तारीफ करते हुए जब अफसरशाही की यह पोल खोल रहे थे तब खचाखच भरे कन्वेंशन सेंटर के मुख्य हाल में मौजूद हर मध्यप्रदेशवासी शर्म महसूस कर रहा था। तब तत्कालीन उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने देवेश्वर को यकीन दिलाया था कि वे मप्र के बड़े निवेशक हैं तथा उनकी समस्या को हर हाल में दूर किया जाएगा। आज कोई नहीं जानता की इस प्रोजेक्ट का क्या हुआ?
ये वादे किए थे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने
इस समिट में निवेशकों से सीधी बात करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि जमीन पसंद करो, उंगली रखो आपको जमीन मिल जाएगी। 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराएंगे। हमारे यहां रियल सिंगल विंडो है। उद्योगपतियों को परेशान नहीं होना पड़ेगा। एक प्रोजेक्ट, एक अफसर की तर्ज पर काम होगा। अधिकारी की जिम्मेदारी होगी की काम पूरा हो और उद्योगपतियों को अनुमतियों के लिए भटकना नहीं पड़े। तीन दिन में काम न होने पर अधिकारी पर जुर्माना लगेगा जो उसके वेतन से कटेगा।
इसके बाद क्या हुआ
मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद ऐसा हुआ भी। ट्रायफेक ने समिट खत्म होने के तुरंत बाद नोडल अधिकारियों की सूची तैयार की। मुख्य सचिव अंटोनी डिसा की सहमति से संभावित निवेश के प्रभारी के रूप में सम्बन्धित विभागों के प्रमुख सचिव की नियुक्ति की गई। जीआईएस 2014 आयोजन की पहली समीक्षा बैठक में नवंबर 2014 में मुख्यमंत्री चौहान के समक्ष ट्रायफेक के एमडी डीपी आहूजा ने प्रेजेंटेशन देकर बताया था कि किस प्रमुख सचिव को किस निवेश प्रस्ताव की जिम्मेदारी दी गई है लेकिन निवेश प्रस्ताव के नोडल अधिकारी की जिम्मेदारी संभलना आईएएस अफसरों को रास ही नहीं आया। उन्होंने पहली ही समीक्षा बैठक में इस बात से अरुचि दिखा दी थी। उद्योग विभाग के सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री के दबाव को देखते हुए कुछ माह तक तो अफसरों ने निवेश प्रस्तावों पर उद्योग विभाग से बात की तथा निवेशकों व उनके प्रतिनिधियों की समस्याएं जानी। फिर जैसे ही मुख्यमंत्री ने समीक्षा बंद की, अफसरों ने इस जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। अब कोई भी नहीं पूछता कि नोडल अफसरों ने कितना काम किया तथा निवेश नहीं आया तो निवेशकों की समस्याएं दूर करने में इन अफसरों ने क्या किया? समीक्षा बैठक में न मुख्यमंत्री ने कभी यह पूछा और न नए उद्योग मंत्री राजेन्द्र शुक्ल इस मामले पर बात करते हैं। न तो किसी पर जुर्माना लगा और न किसी का वेतन काटा गया। जबकि मुख्यमंत्री से मंत्रालय में सोमवार को होने वाली मुलाकात में कई उद्योगपतियों ने काम में आने वाली बाधाओं का जिक्र किया है।
प्रमुख सचिव सुलेमान का शिकार बने IAS
एक बार नहीं मुख्यमंत्री चौहान ने कई बार आईएएस अफसरों को ‘टीम एमपी’ कहा है तथा दर्जनों बार अपने मंत्रियों से अधिक अफसरों की राय को तवज्जो दी है, तो फिर सवाल यह है कि मुख्यमंत्री के विश्वस्त आईएएस अफसरों ने भी मप्र में निवेश लाने की जिम्मेदारी क्यों नहीं संभाली? सूत्रों के अनुसार यहां शिवराज के सपने को पूरा करने के प्रयासों पर आईएएस अफसरों की गुटबाजी भारी पड़ गई। नोडल अधिकारी बनाए गए कई वरिष्ठ आईएएस का कहना था कि निवेश लाने तथा इन्वेस्टर्स समिट को सफल बनाने का पहला दायित्व उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान है। लेकिन सुलेमान ने चतुराई से सभी आईएएस अफसरों को निवेश लाने की जिम्मेदारी दिलवा दी। साफ है निवेश नहीं आया तो सभी दोषी होंगे। अफसरों को यही नागवार गुजरा कि सफलता का श्रेय केवल सुलेमान को मिल रहा था और विफलता सामूहिक उत्तरदायित्व कैसे हो गया? सुलेमान के दबदबे को देखते हुए किसी अधिकारी ने खुल कर आपत्ति नहीं जताई लेकिन दिल से काम भी नहीं किया। इसके अलावा, अनेक कंपनियों की ओर से निवेश की बात करने आए प्रबंधकों का कद प्रमुख सचिव की तुलना में काफी छोटा होता था। अफसरों को यह ठीक नहीं लगा कि किसी कंपनी के जूनियर कर्मचारी से ‘डील’ करें। जबकि ऐसे कर्मचारी जिलों में कलेक्टर के सामने भी हाथ बांधे खड़े रहते हैं।