इंदौर। यदि डॉक्टरीं की लापरवाही के कारण मरीज को नुक्सान होता है तो इसे भगवान भगवान की मर्जी मानकर स्वीकार करने की जरूरत नहीं है। ऐसे हालात में पीड़ित मरीज मुआवजे का हकदार होते हैं। चोइथराम अस्पताल मामला इसका अच्छा उदाहरण है। निचली अदालत ने अस्पताल पर 21 लाख का मुआवजा लगाया था। अस्पताल धमक के साथ मामला हाईकोर्ट में ले गया। तमाम कानूनी दांवपैंच चलाए नतीजा हाईकोर्ट ने मुआवजे की रकम बढ़ाकर 43 लाख कर दी।
क्या था मामला
1990 में महिला साधना अग्रवाल ने चोइथराम अस्पताल में दो जुड़वां बेटियों डिंपल और सिंपल को जन्म दिया था। दो दिन बाद ही उनकी आंखों में कुछ खराबी आ गई, इस दौरान डॉक्टर शिखर जैन ने बच्चियों का इलाज किया था। बाद में पता चला कि डिंपल और सिंपल दोनों की ही आंखों की रोशनी चली गई है। माता-पिता ने बच्चियों का इलाज भारत के कई बड़े अस्पतालों में इलाज करवाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हर जगह उन्हें ये ही बताया गया कि बच्चियों को ज्यादा ऑक्सीजन चढ़ाए जाने से उनकी आंखों की रोशनी गई है।
इतनी बड़ी लापरवाही के मामले को पीड़ित माता-पिता कोर्ट लेकर गए। जिला कोर्ट में मामला चला और फैसला बच्चियों के पक्ष में हुआ। कोर्ट ने अस्पताल को आदेशित किया कि वो पीड़ित परिवार को 21 लाख का मुआवजा अदा करे। लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने कोर्ट का आदेश नहीं माना और उसे हाईकोर्ट में चुनौती दे डाली। हाईकोर्ट ने अस्पताल प्रबंधन की तमाम दलीलें सुनने के बाद मुआवजे की रकम बढ़ाकर 43 लाख कर दी। उम्मीद है कि अब अस्पताल सुप्रीम कोर्ट जाने की हिम्मत नहीं करेगा।