राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर हमलावर है। पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वैश्विक मंच से यह विषय उठा चुके है अब गृह मंत्री अपनी रूस और अमेरिका यात्रा में इसे विषय बनायेंगे। यह दूसरा बड़ा धावा होगा। पूर्वी एशियाई देशों की बैठक में प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को ‘आतंकवाद का उत्पादक और निर्यातक’ बताते हुए उसे अंतरराष्ट्रीय जमात में ‘अलग-थलग करने’ का औचित्य भी बताया।
प्रधान मंत्री को इस बैठक में सुनने वालों में अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ चीनी प्रधानमंत्री भी थे, इसके पहले, समूह-20 की बैठक में भी मोदी ने पाकिस्तान का नाम लिये बिना ‘आतंकवाद के प्रश्रयदाता’ के रूप में उसको कठघरे में किया था।
मोदी यह सब एक सुचिंतित बहुआयामी रणनीति के तहत कर रहे हैं। इस थीम की धुरी बेशक कश्मीर है, लेकिन परिधि में पाकिस्तान को नैतिक रूप असहाय बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाना लक्ष्य है। यह भारत के राजनय में आई एक नई किस्म की आक्रामकता है, जिसके मुठभेड़ के मूल में प्रतिपक्ष को उसकी समझ में आनी वाली भाषा में जवाब देने का पुराना दस्तूर है।
इसमें इंदिरा गांधी के शिल्प का दोहराव देखा जा सकता है। बांग्लादेश की लड़ाई को निर्णायक हद तक ले जाने के पहले इंदिरा गांधी भी घूम-घूम कर पूरी दुनिया को बताती रही थीं कि उनके पड़ोसी की दमनकारी नीति से भारत चौतरफा कितने भारी दबाव में है। फिर जो हुआ वह भारत के अवदान का शानदार इतिहास है। मोदी इसको जानते हुए गोटियां चलते नजर आ रहे हैं तो कहना पड़ेगा कि उनका लक्ष्य ज्यादा बड़ा है। कश्मीर पर भारत ने रक्षात्मक मुद्रा अब त्याग दी है। यह सम्पूर्ण कश्मीर पर दावे से लेकर ब्लूचिस्तान तक दिखता है, इसमें एक साथ पाकिस्तान से लेकर उसके ‘ऑल वेदर फ्रेंड’ चीन तक को संकेत दिया गया है। इसमें सारे खेमों में एक ही समय रहने की गुंजाइश नहीं है। दुनिया के पास आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान के दोमुंहेपन के वैसे भी दर्जनों दृष्टांत हैं। भारत को विश्वास है कि अगर बदलते हुए भू-राजनीतिक-आर्थिक-सामरिक परिदृश्य में वैश्विक बिरादरी उनके तर्क से सहमत हो गई, तो पाकिस्तान दवाब में आ सकता है। मोदी की मुहिम दो ध्रुवीय है-तात्कालिक और दीर्घकालिक. आतंकवाद से तौबा पर रजामंद हुआ पाकिस्तान भारत के लिए मुनासिब होगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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