लौटते बादलों से उपजे ये यक्ष प्रश्न

राकेश दुबे@प्रतिदिन। इस साल बादल खूब बरसें और कहीं कहीं मानसून की बारिश सामान्य से कहीं ज्यादा हुई। वैसे भी जब ज्यादा वर्षा की भविष्यवाणी हुई थी और लोगो ने भविष्यवाणी को ही अच्छे दिनों की शुरुआत मान लिया था। भविष्यवाणियां शुरू हो गई थीं कि फसल अच्छी हुई, तो ग्रोथ रेट कैसे भागेगी? कई कम्पनियों ने अपने मुनाफे का अंदाज लगाते हुए गणना तक शुरू कर दी थी। अब विदा  लेते मानसून और कर्नाटक में हुए उत्पात, जिसे कुछ जगहों पर जल-दंगा भी कहा गया है, एक यक्ष प्रश्न है। जितनी बारिश हुई है, उतनी कर्नाटक के किसानों के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे में, जब कावेरी नदी का पानी तमिलनाडु को देने का मामला आया, तो वहां लोग दंगे पर उतारू हो गए। यह ठीक है कि कावेरी जल बंटवारे पर हुए पूरे बवाल के पीछे एक राजनीति है और पानी को लेकर दोनों राज्यों के बीच तनाव का एक पूरा इतिहास भी है, लेकिन पानी का पर्याप्त न होना भी एक कारण तो है ही।

इसके अलावा देश के कई हिस्से ऐसे हैं, जहां इस बार मानसून की बारिश सामान्य के मुकाबले 20 से 59 फीसदी तक कम हुई है। इसमें कर्नाटक के कुछ हिस्से भी शामिल हैं। इसमें हरियाणा, पंजाब, हिमाचल तो शामिल हैं ही, पूर्वोत्तर भारत और गुजरात के कुछ हिस्से भी हैं। सिर्फ राजस्थान और मध्य प्रदेश का एक हिस्सा ही ऐसी जगहें हैं, जहां बारिश औसत से ज्यादा हुई है। जबकि बाकी देश में बारिश सामान्य रही है। मानसून का यह गणित दो चीजें बताता है। एक तो यह कि तमाम उपग्रह सेवाओं और सुपर कंप्यूटरों का इस्तेमाल करने के दावों के बाद भी हम अभी अपने मौसम के मिजाज को सही ढंग से नहीं समझ पाए हैं। कम से कम इसकी सटीक भविष्यवाणी में तो हम नाकाम ही रहे हैं। मौसम की भविष्यवाणी का विज्ञान दुनिया भर में बहुत विकसित हुआ है, लेकिन न जाने क्यों हम उतना आगे नहीं जा सके। लेकिन इसके साथ ही एक दूसरा सच यह भी है कि मौसम और खासकर वर्षा के पूरे मौसम की शत-प्रतिशत सटीक भविष्यवाणी अब भी संभव नहीं है। इसके कारण अनुमान में कमी-बेशी का खतरा हमेशा बना रहता है।

प्या नहीं क्यों हम इन सभी चीजों की तैयारी नहीं रखते हैं, तो संभव है कि हमें हर मौसम दगा देता दिखाई दे। मौसम के बदलाव के साथ ही सारी दुनिया के विशेषज्ञ इस बात पर सिर खपा रहे हैं कि कम पानी से कैसे काम चलाया जाए, साथ ही यह तैयारी भी रखी जाए कि पानी अगर अतिशय ज्यादा हो गया, तो इससे पैदा होने वाली समस्या से कैसे निपटा जाए? कई देशों ने ऐसी फसलों पर ध्यान देना भी शुरू कर दिया है, जिनके लिए पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती। लेकिन जैसे मौसम की भविष्यवाणी के विज्ञान में हम बहुत पीछे हैं, इस मामले में भी ज्यादा आगे नहीं बढ़े हैं। पूरी दुनिया जब नई तरह की फसलों की ओर बढ़ रही है, हम अभी तक अपने पूर्वाग्रहों को ही विस्तार दे रहे हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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