राकेश दुबे@प्रतिदिन। पाकिस्तान से 160 अस्थि कलश इस पितृ पक्ष में एक पुजारी गंगा में प्रवाहित करने के लिए बमुश्किल भारत लेकर आयें हैं। यह अस्थियाँ पाकिस्तान में रहने वाले उन हिंदुओं की हैं, जिन्होंने वहां अपने प्राण त्याग दिए थे। आस्था है कि किसी मृतात्मा को शांति तब तक नहीं मिलती, जब तक उसकी अस्थियां हरिद्वार ले जाकर गंगा में प्रवाहित न कर दी जाएं। ये अस्थियां वहां एक मंदिर में जमा की गईं। ये अस्थियां कई महीनों और कुछ तो बरसों से हरिद्वार की अपनी यात्रा का इंतजार कर रही थीं। खबरों में यह भी बताया गया है कि पाकिस्तान में रहने वाले सभी हिंदू यह नहीं कर पाते, कुछ मजबूरन अस्थियों को जमीन में गाड़कर वहीं समाधि बना देते हैं। अपने प्रियजनों की आत्मा को परंपरागत ढंग से शांति देने की आकांक्षा सीमा पार करने की मजबूरी के आगे हार मान लेती है।
बेशक, जब ये परंपराएं बनी थीं, तब पूरा भारत एक था। अस्थियों को हरिद्वार ले जाने के साधन चाहे जितने भी कम हों और रास्ते चाहे जितने भी कठिन हों, लेकिन वहां जाने के लिए तब न तो पासपोर्ट की जरूरत पड़ती थी और न वीजा ही लगवाना पड़ता था लेकिन अब इस भूगोल की हकीकत बदल गई है। उनके लिए भी जो जीवित हैं और उनके लिए भी, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। वहां के महंत रामनाथ मिश्र पितृ पक्ष शुरू होने के पूर्व ही भारत आना चाहते थे, लेकिन नहीं आ सके। दूसरे दिन बमुश्किल पहुंचे। 160 लोगों की अस्थियों को ले जाने का सीमा पर क्लियरेंस इतनी आसान बात नहीं है। एक अशांत सरहद के पार जाकर आत्मा की शांति का अनुष्ठान पूरा करना इतना आसान हो भी नहीं सकता।
इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक स्तर पर तनाव कुछ ज्यादा ही है। हमेशा की तरह जब यह तनाव थोड़ा कम होगा, तो दोनों के राजनयिक और नेता फिर बातचीत की मेज पर बैठे दिखाई देंगे। ऐसी वार्ताएं अक्सर होती रहती हैं, लेकिन उनसे कोई बहुत बड़ी उम्मीद नहीं बांधी जाती। दोनों देशों के बीच जो समस्याएं हैं, उनका समाधान शायद इतना आसान भी नहीं है। सीमा पार से आने वाला आतंकवाद, कश्मीर की समस्या, ये सब एक इतिहास की उपज हैं और जब ये हल होंगी, तो एक नया इतिहास बनेगा। इन जटिलताओं को समझा जा सकता है। लेकिन यह बात अक्सर समझ में नहीं आती कि वार्ता की इस मेज पर वे छोटे-छोटे मुद्दे क्यों नहीं आते, जो आसानी से सुलझाए जा सकते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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