एसपी और टीआई ने मिलकर डीएसपी को फंसाया था

जबलपुर। अंतत: यह प्रमाणित हो गया कि डीएसपी प्रकाश कुमार नागोटिया को उस मामले में जान बूझकर फंसाया गया था जिसमें एसपी और टीआई जिम्मेदार हैं। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में डीएसपी नागोटिया के खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। 

न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता जेके मनीष वर्मा ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता जिन दिनों रीवा जिलांतर्गत डीएसपी के पद पर कार्यरत था, उसके अधिकार क्षेत्र में चार थाने आते थे। उन्हीं से लगे अन्य डीएसपी के अधिकार क्षेत्र वाले पांचवें थाने में 17 वर्षीय अनुसूचित जाति की किशोरी का अपहरण हो गया। इसके पीछे रसूखदारों का हाथ था। लिहाजा, संबंधित थाना प्रभारी ने समय रहते ठीक से जांच को गति नहीं दी। 

शिकायत ऊपर तक जाने और मीडिया में खबरें छपने पर उच्च स्तरीय निर्देश जारी हुए। इसके तहत याचिकाकर्ता को मामले की जांच की बागडोर दी गई। उसने पूरी ईमानदारी से अपहरण वाले मामले की जांच पूरी करके रिपोर्ट पेश कर दी। इधर कुछ दिन बाद अपह्त किशोरी की लाश मिली। मामला ट्रायल कोर्ट पहुंचा। 

कोर्ट ने अपने फैसले में पुलिस के खिलाफ तल्ख लहजे में स्ट्रक्चर पास किया। जिसमें कहा गया कि पुलिस ने 17 जनवरी 2010 के अपहरण कांड की जांच 6 अप्रैल 2010 को शुरू की। इससे साफ है कि आरोपियों के दबाव में आकर बचाव की पूरी कोशिश की गई। एसपी व टीआई की जिम्मेदारी थी कि वे बिना देर किए जांच शुरू कर देते। कोर्ट ने आईजी को निर्देश दिए कि वे इस प्रकरण में लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई सुनिश्चित करें।

बहस के दौरान बताया गया कि कोर्ट की टिप्पणी के परिप्रेक्ष्य में बजाए वास्तवित लापरवाह टीआई या एसपी के खिलाफ कार्रवाई करने के उस डीएसपी को फंसा दिया गया, जिसका कोई लेना-देना नहीं था। घटना उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर की थी। वह तो महज उच्च स्तरीय निर्देश पर जांच अधिकारी मात्र बना था। यदि निर्देश विलंब से मिले तो इसमें जांच देरी से करने का वह दोषी कतई नहीं माना जाएगा।

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