राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश में के एक तरफ बाज़ार शिक्षा के क्षेत्र में हावी होता जा रहा है, सरकारी प्रयास गुणवत्ता, नियन्त्रण और नए संस्थान खोलने के मामले में पिछड़ते जा रहे हैं। छोटे-बड़े व्यापारी शिक्षा के क्षेत्र को सबसे लाभप्रद व्यवसाय मान कर मनमानी पर उतारू है। फिर भी देश वैश्विक लक्ष्यों की पूर्ति में कोई स्थान नहीं बना पा रहा है।
हाल ही में जारी यूनेस्को की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर वर्तमान रफ्तार से चले तो वैश्विक शिक्षा प्रतिबद्धता को हासिल करने में भारत आधी सदी पीछे रह जाएगा। अगर भारत 2030 के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है तब देश की शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी बदलाव की जरूरत होगी।
यूनेस्को की नई वैश्विक शिक्षा निगरानी (जीईएम) रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान चलन के आधार पर दक्षिण एशिया में सार्वभौम प्राथमिक शिक्षा लक्ष्यों को 2051 तक हासिल किया जा सकेगा, जबकि निम्न माध्यमिक स्तर पर लक्ष्यों को 2062 तक और उच्च माध्यमिक लक्ष्यों को 2087 तक हासिल किया जा सकेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में सार्वभौम प्राथमिक शिक्षा लक्ष्यों को 2050 तक, सार्वभौम माध्यमिक शिक्षा लक्ष्यों को 2060 तक और सार्वभौम उच्च माध्यमिक शिक्षा लक्ष्यों को 2085 तक हासिल किया जा सकेगा। इसमें कहा गया है कि इसका अर्थ हुआ कि क्षेत्र 2030 के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में आधी सदी से अधिक पीछे रह जाएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ने की जरूरत है और इस क्षेत्र को मानवता एवं पृथ्वी के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों से निपटने और क्षमता हासिल करने के लिए बदलाव लाने की जरूरत है। देश को वर्तमान बाज़ारवाद से मुक्त करने के लिए कोशिश करना होगी। शासकीय नीति का निर्धारण और भविष्य की आवश्यकताओं के बीच संतुलन बैठा करना होगा। आयोग तो आज़ादी के बाद से अब तक इस क्षेत्र में कई बने पर आज भी भवन और शिक्षक विहीन स्कूल और कालेज से सरकार मुक्ति नहीं दिला सकी है। एक समग्र सोच की जरूरत है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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