यहां स्थित है माता पार्वती का मायका, 12 साल में एक बार होती है यात्रा

राजेन्द्रपंत। श्री नन्दा देवी की यात्रा प्रत्येक 12 साल में एक बार आयोजित की जाती है। 280 किलोमीटर की यह यात्रा एक विराट यात्रा है। मां नन्दा को शिवा अर्थात शिव पत्नी मां पार्वती के रूप में पूजा जाता हैै। कैलाश पर्वत अर्थात भगवान शिव का वास स्थान उनकी ससुराल है, और इसी पर्वत के विराट वैभव में स्थित चमोली जिले के पट्टी चादपुर और श्री गुरू क्षेत्र को मातेश्वरी माता नन्दा का मायका माना जाता है। कहा जाता है कि एक बार मां अपने मायके आयी और मायके के मोह से महामाया 12 साल तक अपने ससुराल से विमुख रहकर मायके में ही ठहरी रही। 

समय बदला और 12 साल के लम्बे समय बाद जब उन्हें ससुराल को विदा किया गया तो मायके वासी मां के वियोग में ब्याकुल हो उठे भावुक मैतियों अर्थात मायके वालों ने परम आदर सत्कार के साथ मां को सस्नेह विदाई दी। रीति रिवाज से दी गयी विदाई अमिट याद बन गई। युग युगान्तर के बाद भी यह रस्म निर्मल भावनाओं के साथ बडी श्रद्वा के साथ निभाई जाती रही है। 

यात्रा रिगणी घाट गैरोली पातल होते हुए 3,354 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बेदिनी बुग्याल पहुचती है, यहां पर महाकाली का पूजन होता है। यह क्षेत्र पूर्णतया वृक्ष विहीन है, यहां के हरे मखमली घास के बुग्यालों की सुन्दरता देखते ही बनती है। आगे कैलुआविनायक, बगुआबासा चिडियांनाग होते हुए यात्रा 4,061 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रूपकुण्ड पहुचती है। इस कुण्ड में लगभग 700 साल पुराने नर कंकाल है। वैज्ञानिकों का अनुमान है, कि ये कंकाल यात्रियों के ही है, जो किसी प्राकृतिक आपदा के कारण दुर्घटना के शिकार हो गये थे। 

इससे आगे समुद्र शिला यात्रा का सुन्दर पडाव है। यहां पर्वतों की ऊंचाई अधिक होने के कारण वायुदाब कम हो जाता है, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है, हिमाच्छादित प्रदेश होने के कारण चट्टानों के टूटने का यहां अक्सर खतरा बना रहता है, कठिन मार्ग को पार कर भाद्रमास की नवमी तिथि को यात्रा होमकुण्ड पहुचती है। पूजा पाठ के पश्चात चौसिगियां खाडू अर्थात चार सीगं वाले भेड को पीठ पर बंधी पोटली के साथ त्रिषूली पर्वत मां नन्दा के धाम को विदा किया जाता है। 

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