क्या हर LLB पास व्यक्ति एडवोकेट होता है, सुप्रीम कोर्ट ने दिया जवाब

नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकालत करना किसी का पूर्ण या असीम अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि यह वैधानिक अधिकार है, जिसे नियंत्रित और व्यवस्थित किया जा सकता है। न्याय सुनिश्चित करने के लिए अदालतें इस पर नियंत्रण कर सकती हैं।

न्यायमूर्ति एके सिकरी और न्यायमूर्ति एनवी रमण की पीठ ने कहा कि अदालतों में किस तरह से कार्यवाही हो या उसका संचालन किस तरीके से किया जाए, इस पर अदालतों का नियंत्रण होता है। यह अदालतों का अधिकार में शामिल है। महज इसलिए कि वकील को वकालत करने के अधिकार है, अदालतों को अपने इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। पीठ ने इस नियम को सही ठहराया है।

शीर्ष अदालत इस संबंध में कानूनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को सही ठहराया है जिसमें कहा गया था कि वह वकील जो उत्तर प्रदेश बार कौंसिल में पंजीकृत नहीं है उसे पैरवी या जिरह करने की तभी इजाजत दी जाएगी जब वह उत्तर प्रदेश बार कौंसिल से पंजीकृत किसी वकील के साथ मिलकर वकालतनामा दाखिल करें। 

हाईकोर्ट केइस फैसले को वकील जमशेद अंसारी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जमशेद अंसारी का कहना था कि इस तरह की अतार्किक पाबंदी मूल अधिकार का उल्लंघन है। संविधान के तहत सभी नागरिकों को अपना पेशा चुनने और उसे करने का अधिकार है। साथ ही जमशेद अंसारी ने कहा कि इस तरह की पाबंदी एडवोकेट एक्टर की धारा-30 का भी उल्लंघन है। याचिकाकर्ता का कहना था कि हर नागरिक को अपने बचाव के लिए अपने मनमाफिक वकील चुनने का अधिकार है, लिहाजा इस तरह ही पाबंदी न्यायोचित नहीं है।

लेकिन शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि इस तरह के नियम के पीछे उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जरूरत पडने पर उस वकील को खोजा जा सके और जो अदालतों के प्रति जवाबदेह हो। शीर्ष अदालत ने कहा है कि जनहित को देखते हुए इस तरह की पाबंदी तार्किक है।

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