कहीं अध्यापक अपना मनोबल न खो दें

अशोक कुमार देवराले। मध्यप्रदेश के अध्यापक लगातार शासन की नीतियों के कारण आंदोलित हो जाते है। मप्र की बात करें तो यहाँ पर शिक्षक के साथ हमेशा शल्य क्रिया की है। मप्र में तो शिक्षक शब्द या पद को मृत घोषित कर दिया गया है। शिक्षक शब्द की मौत हुए यहाँ 01 दशक से भी अधिक हो गया है।

म.प्र.में शासन ने बाकायदा सरकारी नियम बनाकर शिक्षक को मृत संवर्ग घोषित कर दिया है।अभी जो नोजवान सरकारी शालाओं में अध्यापन कार्य करते दिख रहें है ।वह शिक्षक नहीं है वो या तो अध्यापक जो पूर्व में शिक्षाकर्मी या संविदा शिक्षक थे।या फिर अतिथि शिक्षक है।वे सब लंबे समय से शिक्षक बनने के लिए संघर्षरत हैं और लगतरआन्दोलन कर रहे है।

म.प्र. के ये शोषित अध्यापक ,संविदा शिक्षक,गुरूजी,अतिथि शिक्षक अपने शोषण को लेकर आन्दोलनरत हैं। आखिर ऐसी कौन सी समस्या है जो विगत 02 दशकों में सरकार सुलझा नहीं पा रही है। यह स्वयं सरकार के लिए गंभीर चिंतन का विषय है। एक और सरकार खुद अनिवार्य शिक्षा अधिनियम बनाकर देश 14 वषों तक के बच्चों को शिक्षा देने का वादा कर रही है।वहीँ शिक्षा देने वाले इन नोजवानों का शोषण कर रही है वे मानसिक रूप से तैयार नहीं है अध्यापकों की समस्याएं जीतनी भारी उनके लिए है ,उससे कहीं अधिक भारी और घातक समाज के लिए भी है। बिना विलम्ब किये इस पर व्यापक चिंतन की आवश्यकता है।

क्योंकि प्रदेश में 80% सरकारी शलसों में अध्यापक,संविदा शिक्षक,गुरूजी,अतिथि शिक्षक काम करता हुआ कुंठित है।इतने बड़े शिक्षक समुदाय की कुंठा को नजर अंदाज होते देख यह कुंठा और अधिक बड़ जाती है। स्वयं के अनिशिचत भविष्य को लेकर अति कुंठित  एवं दिशा हीन जीवन काटने वाले व्यक्ति दूसरों को बेहतर कैसे बना सकता है।फिर भी वह प्रयास करता है।

शिक्षक पद को समाप्त करना और समांतर व्यवस्था बनाकर देश के नोजवानों का शोषण की जवाबदार स्वयं सरकार है।आज अगर शिक्षा की दुर्दशा म.प्र.में है तो उसकी जवाबदारी भी सरकार की ही है। क्योकिं जो वर्तमान हालात पैदा हुए है वो सरकार ने ही किये है। जबकि शिक्षक समाज का सबसे जिम्मेदार व्यक्ति होना चाहिए ,शिक्षक की जिम्मेदारी मात्र बच्चों को पाठ्यक्रम पूरा करना ही नहीं बल्कि शिक्षक छात्र के पुरे जीवन और चरित्र  विकास के प्रति भी उत्तरदायी होता है।शिक्षक आने वाली पूरी पीढ़ी के प्रति उत्तरदायी होता है।सारे समाज के प्रति उत्तरदायी होता है।

यदि सरकारें यह बात समझती है तो चंद पैसे बचाने के लिए शिक्षक को संविदाकार,अध्यापक,गुरूजी,अतिथि शिक्षक जैसे नाम देना एवं इनका आर्थिक शोषण करना कतई उचित नहीं है। म.प्र.का अध्यापक और संविदा शाला शिक्षक ,गुरजी,अतिथि शिक्षक इस बात को लेकर चिंतित है कि उनको गैर जिम्मेदार बनाने की साजिश की जा रही है। शासन की अलग अलग नाम और नीतियां बस दिखावटी है मूल नीति तो यह है कि कम पैसे में अल्प वेतन पर काम कराना।

तुलनात्मक रूप से आज तक कोई वास्तविक परिवर्तन नहीं हुआ है।जिस वेतन मात्र के लिए वो संघर्षरत है वह आज भी शिक्षक और उसके वेतन में  दो से तीन गुने का अंतर है।अध्यापक आज भी पूर्व की तरह सामाजिक रूप से पूर्णतया असुरक्षित है।जबकि देश में असंगठित क्षेत्र एवं खेतिहर मजदूरों तक को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया गया है।

आज तक प्रदेश में कार्यरत 03 लाख अध्यापकों का सरकार बीमा तक नहीं करा पाई है।गंभीर बीमारी का इलाज करवाने की कोई शासन स्तर पर सुविधा नहीं है। कोई मासिक पेंशन व्यवस्था भी इनके लिए नहीं है।

शासकीय महकमें में देखा जाय तो सबसे असुरक्षित वर्ग यही है। अध्यापक संवर्ग में मौत के बाद भी उसके परिवार को कोई सुरक्षा नहीं है बीमा सुविधा तो 20 साल में सरकार नहीं दे पाई और अनुकम्पा नियुक्ति के नियम कठिन बनाकर उस अधिकार से भी वंचित कर दिया।

सरकार समाज के इस मत्वपूर्ण वर्ग के साथ हमेशा अन्याय ही करती है। बिलकुल भी गंभीर नहीं है यही कारण है कि छटवें वेतन की घोषणा के बाद 08 माह तक सरकार इसे लागु भीं कर पाई। अध्यापकों को छटवां वेतन भी जी देने जा रही है उसमें भी नियमानुसार  नहीं दिया जा रहा है।और एक बार फिर अध्यापक वर्ग को सातवें वेतनमान से वंचित किया जा रहा है।महिला अध्यापकों को संतान पालन अवकाश से सरकार ने वंचित कर दिया है। यही कारण होता है अध्यापक का बार बार आंदोलित होने का।

भारतीय शिक्षक समाज के मुकुट मणि डा.राधाकृष्णन जी ने कहा था कि अन्याय करने सर बड़ा अपराध अन्याय को सहना है। आज प्रदेश का अध्यापक मानसिक रूप से कुंठित है डर इस बात का है कि लंबे समय से कुंठित ये शिक्षक एक दिन अपना मनोबल न खो दें और स्थिति ऐसी न हो जाय कि वह अपने पुरे मनोयोग से देश की भावी पीढ़ी के साथ इंसाफ न कर सके।

सरकार से निवेदन है कुंठित अध्यापकों की समस्याओं पर विचार कर एक मुस्त हल किया जावे। जल्द ही इस वर्ग को छठवां वेतनमान नियमानुसार देकर इस वर्ग को गैर बराबर न बनाते हए सातवें वेतनमान दे दायरे में प्रदेश के अन्य कर्मचारियों के साथ लाया जाय।

अशोक कुमार देवराले
प्रांतीय उपाध्यक्ष
म.प्र.शासकीय अध्यापक संगठन

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