बीजिंग। अमेरिका और जापान की ओर से दबाव के बावजूद दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर ‘निष्पक्ष रुख’ अपनाने के लिए भारत की सराहना करते हुए चीन के सरकारी मीडिया ने बुधवार को कहा कि दोनों देशों के बीच भले ही कुछ विरोधाभास और मतभेद हैं लेकिन समग्र तौर पर इनके बीच दोतरफा संबंध निर्बाध रूप से विकसित होते रहे हैं। सरकारी ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में कहा गया कि सुरक्षा के मुद्दे पर दक्षिण चीन सागर पंचाट की ओर से अंतिम फैसला सुनाए जाने पर भारत ने वाशिंगटन और तोक्यो की ओर से दबाव के बावजूद निष्पक्ष रुख बनाए रखा। संबंधों को सुधारने के लिए इसे ‘आगे की दिशा में एक ठोस कदम’ बताते हुए लेख में कहा गया- हम इस बात को मानते हैं कि चीन और भारत के बीच कुछ विरोधाभास व मतभेद हैं लेकिन समग्र तौर पर दोतरफा संबंध निर्बाध रूप से विकसित होते रहे हैं। चीनी मीडिया ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत की सदस्यता को रोकने का आरोप चीन पर मढ़ने में बढ़-चढ़कर सक्रियता दिखाने के लिए भारतीय मीडिया की आलोचना भी की।
इसके साथ ही चीनी मीडिया ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी की पिछले सप्ताह भारत यात्रा और दक्षिण चीन सागर मुद्दे को एक साथ जोड़कर देखने के लिए भी भारतीय मीडिया की आलोचना की। चीनी मीडिया ने कहा कि भारतीय मीडिया ने वांग के भारत दौरे को दक्षिण चीन सागर मामले और एनएसजी सदस्यता हासिल करने में देश की विफलता के साथ जोड़कर देखने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछले महीने एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने ऐतिहासिक अधिकारों के आधार पर दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावों को खारिज कर उसे बैकफुट पर ला दिया था। इस क्षेत्र को लेकर चीन का यह समुद्री विवाद फिलीपीन, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान के साथ है। चीनी मीडिया ने कहा कि एनएसजी मामले में भारतीय मीडिया हद से आगे बढ़ गया। एनएसजी सदस्यता के नियम अमेरिका या चीन नहीं बनाते। भारत इस क्लब में दाखिल होने की योग्यता को पूरा करने में विफल रहा। एनएसजी के दर्जन भर सदस्य भारत की कोशिश का विरोध कर रहे हैं। इसलिए इस बात का कोई मतलब नहीं बनता कि भारतीय मीडिया चीन पर उंगली उठाए।
उसने कहा- संभव है कि दोनों देशों ने वांग के दौरे के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा की हो। संभव है कि उन्होंने इस मुद्दे पर अपने विचार, रुख और नीतियां स्पष्ट की हों। लेकिन ऐसी अटकलों का कोई औचित्य नहीं कि वांग नई दिल्ली को एनएसजी सदस्यता में मदद कर दक्षिण चीन सागर पर भारत का समर्थन पाने की कोशिश कर रहा है। पिछले कुछ दिनों में भारतीय मीडिया की आलोचना करने वाला दैनिक समाचार पत्र का यह दूसरा लेख है। 15 अगस्त को एक अन्य लेख में इसने भारतीय मीडिया पर आरोप लगाया था कि वह दोतरफा संबंधों में असहमतियों को रेखांकित कर चीन के खिलाफ नकारात्मक भावनाओं को भड़का रहा है। लेख में कहा गया- बेजिंग और नई दिल्ली ने आर्थिक व व्यापारिक सहयोग के लिए उम्मीदें जगाई हैं। लेकिन उन्हें हकीकत में बदलने के लिए व्यापक सहमति और ज्यादा विमर्श की जरूरत है। आर्थिक व व्यापारिक मुद्दों में दोतरफा सहयोग में आने वाली समस्याओं को रेखांकित करते हुए चीनी मीडिया ने कहा कि बीते वर्षों में इस संदर्भ में साझा कार्य निर्बाध रूप से नहीं हुए हैं। इसलिए हमें बाधाओं पर ध्यान देने के बजाय साझा लाभों पर सहयोग को ज्यादा महत्त्व देना चाहिए। क्षेत्रीय विवादों जैसी कुछ लंबित समस्याओं के कारण चीन और भारत के लिए सच्चे दोस्त बनना मुश्किल हो सकता है। लेकिन दुश्मन बन जाने से किसी के हित नहीं सधेंगे। चीनी मीडिया ने कहा कि एशिया की दो सबसे बड़ी उभरती शक्तियों के तौर पर अगर चीन और भारत अपने मित्रवत रिश्तों को बढ़ा सकते हैं और कार्बन उत्सर्जन घटाने, विश्व बैंक व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष सुधार जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर ज्यादा सहयोग कर सकते हैं तो ये दोनों देश पहले से अधिक साझा लाभ आपस में बांट सकते हैं।