भोपाल। आप इसे महिला की बहादुरी कहें या जोखिम में जान डाल देने वाली बेवकूफी। आप इसे सिस्टम की बेदर्दी या सरकारी नौकरी के लिए तड़पती बेरोजगारी। लेकिन यह हो गया है। टीकमगढ़ से भिंड में डीएलएड की परीक्षा देने आई एक गर्भवती विवाहिता मंगलवार को पेपर देने समय परीक्षा हॉल में ही दर्द से कराह उठी। उसे अस्पताल दाखिल किया गया। उसने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया, लेकिन बुधवार को गोद में नवजात लिए फिर परीक्षा देने आ गई।
महिला का नाम आरती यादव, उम्र 22 वर्ष, पति राजपाल यादव है। सरकारी नौकरी चाहिए इसलिए डीएलएड करना है। जब परीक्षाओं की तारीख आई तो आरती गर्भवती थी। इसी अवस्था में आरती अपने पति के साथ भिंड आ गई। फिलहाल वो अस्पताल में है और वहीं से परीक्षाएं भी दे रही है।
डॉक्टर क्या कहते हैं
डॉक्टर कहते हैं कि कम से कम 3 दिन तक जच्चा एवं बच्चा को एक साथ रहना चाहिए। यदि माता ने इस अवधि में विश्राम नहीं किया और उसे लगातार मेडिकल सेवाएं नहीं मिलीं तो संक्रमण फैल सकता है और यह जानलेवा होता है। डॉक्टर कहते हैं कि जीवन से बड़ा कुछ नहीं होता। उनके हिसाब से आरती ने जान का जोखिम उठाया है, जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।
तो फिर जोखिम क्यों उठाया
मध्यप्रदेश में 2018 में विधानसभा चुनाव आ रहे हैं। आरती जैसी ग्रामीण महिलाओं को भी पता है कि सरकार 2017 में दनादन भर्तियां करेगी। सरकार बन गई तो फिर भर्तियां नहीं होंगी। हालांकि नियम हर साल भर्ती करने का है परंतु शिवराज सरकार ने इसे भी वोट की राजनीति से जोड़ दिया है। आरती किसी भी कीमत पर यह मौका गंवाना नहीं चाहती।
सरकारी नौकरी ही क्यों
भारत में श्रमकानून तो काफी मजबूत हैं परंतु जो संरक्षण सरकारी कर्मचारियों को मिलता है वो प्राइवेट कर्मचारियों को दिया ही नहीं जाता। सरकारें वोट के दवाब में नीतियां बदल देती हैं। कर्मचारियों को लाभ मिल जाता है। यदि सरकार प्राइवेट कर्मचारियों की चिंता करना शुरू कर दे तो सरकारी नौकरियों की लंबी लाइन अपने आप कम हो जाएगी।
सिस्टम को बेदर्द क्यों कहा
यदि कोई विद्यार्थी अस्पताल, जेल या ऐसी स्थिति में है जहां से उसका परीक्षा कक्ष तक आना संभव नहीं है तो सरकार को चाहिए कि वो उसके लिए अस्पताल या जेल में ही परीक्षा आयोजित करे। यह बहुत मुश्किल नहीं है झंझट वाली नीतियां कोई अधिकारी बनाना नहीं चाहता। यदि आरती की परीक्षा अस्पताल में ही आयोजित करवा दी जाए तो जान का जोखिम नहीं होगा।