राकेश दुबे@प्रतिदिन। हर मानसून के दौरान भारत के विभिन्न क्षेत्रों से बाढ़ की खबरें आती ही हैं और भारत जैसे विशाल देश में यह स्वाभाविक भी है। इस साल बारिश आमतौर पर सामान्य से ज्यादा हुई है, इसलिए बाढ़ की ज्यादा खबरें स्वाभाविक हैं। इसके साथ यह भी जोड़ना जरूरी है कि बाढ़ की स्थिति गंभीर होना हर वक्त स्वाभाविक नहीं होता, उससे खराब जल प्रबंधन का भी संकेत मिलता है। पिछले कुछ वर्षों से देश के कई हिस्सों में बाढ़ की स्थिति जिस तरह से गंभीर हुई है, उससे पता चलता है कि पानी के संग्रह और निकासी को लेकर वर्षों पुरानी लापरवाही के खराब नतीजे सामने आने लगे हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप एक बहुत बड़ा भूभाग है और हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि किसी भी वर्ष हर जगह सामान्य बारिश होगी। वास्तव में, हम जिसे भारत की सामान्य वर्षा कहते हैं, वह अनेक वर्षों का मौसम निकालकर तय की गई है, और ठीक उतनी वर्षा शायद किसी भी साल नहीं हुई है। ऐसे में, किसी इलाके में ज्यादा और किसी इलाके में कम बारिश हर साल होगी। इस साल मौसम विभाग का सामान्य से ज्यादा बारिश का अनुमान सही होते दिख रहा है, फिर भी देश के कई हिस्सों में सामान्य से काफी कम बारिश भी रिकॉर्ड की गई है। इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों से मौसम में बदलाव, यानी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बारिश ज्यादा अनियमित होने लगी है।
इन तमाम वजहों से पानी का सही प्रबंधन ज्यादा जरूरी है, ताकि बाढ़ से नुकसान न हो और पानी का संग्रह भी किया जा सके। ये दोनों बातें जुड़ी हुई हैं। पानी को रोकने और संग्रह करने के जरूरी इंतजाम नहीं किए गए हैं और पुराने इंतजाम कथित विकास की भेंट चढ़ गए हैं, इसलिए बारिश का अतिरिक्त पानी बाढ़ पैदा करता है और बारिश के खत्म होने पर पानी की किल्लत पैदा हो जाती है। तमाम शहरों, कस्बों, गांवों में पुराने तालाबों पर अतिक्रमण हो गया है और नदियों में गाद भर गई है, इसलिए जगह-जगह पानी का विध्वंस देखने में आता है।
अब वक्त आ गया है कि भारत में जल प्रबंधन को अनियमित और फौरी तौर-तरीकों से निजात दिलाई जाए, और एक दूरगामी नीति के तहत काम किया जाए। पिछले कई वर्षों से भारत के तमाम ग्रामीण इलाकों के अलावा कई महानगर बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। इसी के साथ-साथ जल संकट भी बढ़ रहा है। अब भी अगर सरकार और समाज ने गंभीरता से उपाय नहीं किए, तो बाढ़ और सूखा देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा बोझ बन जाएंगे। दुनिया में मौसम का चक्र जिस तरह से बदल रहा है, उसके रहते जल प्रबंधन के साथ ही आपदा प्रबंधन को भी बेहतर करने की जरूरत है। प्रकृति के मिजाज को पहचानकर उसके साथ जीने की कला हमें नए सिरे से सीखने की जरूरत है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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