समझ गया मप्र हाउसिंग बोर्ड, ग्राहक ही भगवान होता है

भोपाल। मप्र में हाउसिंग बोर्ड से मकान खरीदना जैसे भगवान की तपस्या कर वरदान प्राप्त करने जैसा है। अप्लाई करने तक तो सब ठीक है। एक बार लॉटरी निकल आए, फिर शुरू होता है हाउसिंग बोर्ड का जाल और फंसा दिखाई देता है ग्राहक। सस्ती दरों के लालच में आया ग्राहक जब अपने मकान का पजेशन प्राप्त करता है तब पता चलता है कि घटिया निर्माण के बावजूद उसे बाजार दर से ज्यादा पर मकान मिला है। 

लेकिन लगता है अब हाउसिंग बोर्ड को समझ आ गया है कि बाजार में विक्रेता नहीं, ग्राहक भगवान होता है। बोर्ड के संचालक मंडल की बैठक बुधवार को पर्यावास भवन स्थित कार्यालय में हुई। गृह निर्माण एवं अधोसंरचना विकास मण्डल (हाउसिंग बोर्ड) के अध्यक्ष बनने के बाद कृष्ण मुरारी मोघे की अध्यक्षता में यह पहली बैठक थी। इसमें तय किया गया है कि ग्राहक को बुकिंग के वक्त बताई गई कीमत पर ही मकान दिया जाएगा। यदि निर्माण में देरी के कारण प्रोजेक्ट की लागत बढ़ती है ताे इसकी भरपाई उपभोक्ताओं की बजाए संबंधित ठेकेदार से की जाएगी।

ब्लैकमेलिंग भी बंद करा दीजिए मोघे जी
हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष कृष्ण मुरारी मोघे ने ग्राहकों के सामने उम्मीद की एक किरण पेश की है। आशा की जा सकती है कि बोर्ड की ब्लैकमेलिंग बंद होगी लेकिन यह केवल शुरूआत है। मोघे के लिए हाउसिंग बोर्ड को सुधारना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। सबसे बड़ी समस्या है रिश्वतखोरी। हाउसिंग बोर्ड की लगभग हर टेबल पर घूसखोरी होती है। यह खुलेआम होती है। आप जानकर चौंक जाएंगे कि यहां ग्राहक को किसी प्रकार की राहत के बदले घूस नहीं वसूली जाती बल्कि नियमानुसार काम करने के बदले घूस देनी होती है। यदि घूस नहीं देगा तो नियमानुसार काम भी नहीं होगा। अड़ंगे लगा दिए जाएंगे, परेशान किया जाएगा। चक्कर लगवाए जाएंगे। 30 लाख कीमत के एक मकान पर ग्राहक को सभी प्रकार की घूस मिलाकर करीब 2 लाख रुपए अतिरिक्त चुकाने होते हैं। नहीं चुकाओ तो 10 नंबर का मकान 101 नंबर पर चला जाता है। तमाम सरकारी विभागों में रिश्वत के बदले लोग नियम विरुद्ध सुविधाएं प्राप्त करते हैं परंतु यहां तो नियमानुसार कार्रवाई के लिए पैसे देने पड़ते हैं। यह रिश्वतखोरी नहीं, ब्लैकमेलिंग है। 

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