सूखाग्रस्त गांव के मजदूर की बेटी ओलंपिक के फाइनल में

पुणे। ओलिंपिक में एथलीट ललिता बाबर महिलाओं की 3 हजार मीटर स्टीपलचेज के फाइनल में पहुंची हैं। पीटी उषा के बाद फाइनल में पहुंचने वाली ललिता पहली भारतीय एथलीट हैं। ललिता महाराष्ट्र के सतारा जिले के सूखाग्रस्त मोही गांव से हैं। उसका बचपन काफी बदहाली में बीता। देश का नाम रोशन करने वाली इस एथलीट के पास शूज खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे। 

ललिता बाबर का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के सूखापीड़ित माण तहसील के एक छोटे गांव मोही में हुआ। ललिता के पिता शिवाजी बाबर और मां निर्मला खेतों में मजदूरी कर अपना गुजारा करते थे। उनकी आर्थिक हालत काफी नाजुक थी। ललिता ने एक इंटरव्यू में बताया था, बिना शूज के कारण उसे स्कूल के दिनों में एक एथलेटिक्स प्रतियोगिता से हटाया गया था। बाद में ललिता अपने सहयोगी एथलीटस के शूज यूज कर प्रतियोगिता में हिस्सा लेती थी। 

हर रोज बिना शूज के पांच से 6 किलोमीटर दूर स्कूल दौड़ती जाती थी इससे उसकी प्रैक्टिस भी होती थी। आर्थिक हालत नाजुक होने बावजूद ललिता के माता-पिता ने उसका हमेशा साथ दिया। 
ललिता का इसी क्षेत्र में करियर बनाना के सपना था, उसने डिस्ट्रिक्ट और स्टेट लेवल पर कईं मेडल जीते थे। सन 2005 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए पहली बार ललिता ने शूज खरीदे थे।

रेलवे में जाॅब से बदली किस्मत
सन 2005 में पुणे में ललिता ने अंडर 20 के ग्रुप में गोल्ड मेड़ल हासिल किया था। उसका हुनर देख उसे भारतीय रेलवे में टीटीई की जाॅब आॅफर किया और यहीं से ललिता की किस्मत बदल गई। रेलवे की जाॅब से आर्थिक तंगी की समस्या खत्म हुई और ललिता 2006 से बेंगलुरु में नेशनल शिविर में प्रशिक्षण लेने लगी। इसके बाद ललिता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, उसने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब तक 23 से अधिक पदक जीते हैं। 

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !