हाईकोर्ट में हार गए केजरीवाल, दिल्ली पर राज एलजी का चलेगा

नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस का विरोध करके दिल्ली में सरकार बनाने वाले अरविंद केजरीवाल हाईकोर्ट में हार गए हैं। दिल्ली पुलिस पर उनका राज नहीं चलेगा। उपराज्यपाल ही दिल्ली का बॉस होगा और उसी की हुकूमत चलेगी। हाईकोर्ट ने केजरीवाल की याचिका खारिज कर दी है। 

तय हो गया ‘दिल्ली का बॉस’
आज दिल्ली हाई कोर्ट तय करना था कि आखिर दिल्ली पर किसका कितना अधिकार। दिल्ली को लेकर जारी केंद्र सरकार की अधिसूचना सही थी या नहीं, या क्या दिल्ली सरकार बिना उपराज्यपाल की अनुमति के फैसले ले सकती है? या फिर क्या उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के फैसले को मानना ज़रूरी होगा और अब सब साफ है कि दिल्ली का बॉस LG(उपराज्यपाल) ही हैं।

9 अलग-अलग याचिकाओं और अर्ज़ियों पर आदालत का फैसला
ये और ऐसे कई और सवाल जिन पर आज दिल्ली हाइकोर्ट का फैसला आया है। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच अधिकारों की लड़ाई को लेकर दायर 9 अलग-अलग याचिकाओं और अर्ज़ियों पर आदालत ने फैसला सुनाया है। जिसमें एसीबी पर अधिकार, उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के अधिकार, दिल्ली सरकार के अधिकार, दिल्ली पर केंद्र का अधिकार जैसे अहम मुद्दों पर कानूनी रुख साफ़ हो गया है।

दिल्ली सरकार ने केंद्र की अधिसूचना को चुनौती दी थी
इन याचिकाओं में दिल्ली सरकार की वो याचिका भी शामिल थी जिसमें दिल्ली सरकार ने केंद्र की उस अधिसूचना को चुनौती दी है। इसके साथ ही अन्य याचिकाओं में दिल्ली सरकार के अधिकारों पर सवाल उठाये गए थे। इसी मामले पर रोक लगाने के लिए दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी थी. लेकिन, SC ने दिल्ली सरकार को झटका देते हुए वापस हाइकोर्ट जाने को कहा था।

इससे पहले हाइकोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने दलील देते हुए कहा था कि…
दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है और ये 239 AA के बाद भी केंद्र शासित प्रदेश ही है।
दिल्ली क्योंकि देश की राजधानी है लिहाज़ा इसको पूरे तौर पर राज्य सरकार के ज़िम्मे नहीं दिया जा सकता और इस पर केंद्र का अधिकार होना ज़रूरी।
उपराज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर काम करते है जो की केंद्र की सलाह के साथ फैसले लेते हैं।
सीएम सिर्फ सलाह दे सकते हैं अंतिम फैसला उपराज्यपाल का ही होता है। अगर मतभेद होता है तो राष्ट्रपति और केंद्र सरकार की सलाह लेकर फैसला ले सकते हैं।
उपराज्यपाल और राज्यपाल में अंतर होता है। उपराज्यपाल केंद्र की सलाह लेकर ही काम करता है राज्यपाल के साथ ऐसा नहीं है।
दिल्ली सरकार के मंत्रियों की सलाह मानना उपराज्यपाल के लिए ज़रूरी नहीं। अगर नहीं उचित लगता तो राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं और जब तक राष्ट्रपति का जवाब नहीं आता तब तक अपने विवेकानुसार ले सकते हैं फैसला।
राष्ट्रपति केंद्र सरकार के मंत्री और मंत्रियों के समूह की सलाह के आधार पर अपने फैसले लेते हैं और वही सलाह उपराज्यपाल तक आती है और उसी आधार पर काम करना होता है।

वहीं केजरीवाल सरकार के वकील ने दलील देते हुए कहा था की….
दिल्ली में जनता सीएम और प्रतिनिधि को चुनती है और ऐसे में दिल्ली का असली बॉस मुख्यमंत्री ही हो सकता है।
हम कोई भी फैसला लेते हैं उपराज्यपाल उसको असंवैधानिक करार दे देते हैं।
एसीबी का कार्यक्षेत्र दिल्ली है लिहाजा वो दिल्ली सरकार के अधीन ही आता है।
उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के कैबिनेट फैसले को मानने को बाध्य हैं।

इस तरह से हाइकोर्ट में दोनों पक्षों के बीच कई महीनों तक बहस चलती रही जिसके बाद हाइकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था। आज आने वाले हाइकोर्ट के फैसले से ये साफ़ हो गगा कि आखिर दिल्ली के असली बॉस है कौन मुख्यमंत्री केजरीवाल या फिर उपराज्यपाल।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !