भोपाल। एक मासूम बच्चे को लात मारने वाले विवाद के बाद प्रदेश भर में चर्चित हुईं तत्कालीन महिला बाल विकास मंत्री कुसुम मेहदेले का नाम अब मप्र में हुए पौष्टिक आहार घोटाले में आ गया है। हिन्दी अखबार दैनिक भास्कर ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया है। खुलासा किया है कि मंत्री महोदया ने इस घोटाले को करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दरकिनार कर केबिनेट का फैसला ही पलट डाला। मंत्री कुसुम मेहदेले इन दिनों लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी एवं जेल मंत्री हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2004 में आदेश दिए कि पोषण आहार की राशि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और अध्यक्ष सहयोगनी मातृ समिति के ज्वाइंट अकाउंट में जमा कराई जाए। इसे लागू करने में सरकार को ढाई साल से ज्यादा समय लगा लेकिन इस फैसले को पलटने में कोई देरी नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जनवरी 2007 से शुरू गई व्यवस्था एक वर्ष के अंदर ख़त्म कर दी गई। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहयोगिनी मातृ समितियों के बैंक खातों में भेजी जाने वाली राशि पर रोक लगा दी गई।
मंत्रीजी ने विधानसभा में दिए गए आश्वासन की आड़ में इसे तत्काल पलट दिया और ठेकेदारों की तरफ से चलने वाले महिला मंडलों और सेल्फ हेल्प ग्रुप्स को न्यूट्रिशियस डाइट सप्लाई करने की जिम्मेदारी फिर सौंप दी। यह व्यवस्था लागू करवाने में मंत्री समेत पूरा महिला बाल विकास इस कदर उतावला था कि मंत्री के आश्वासन के मात्र आठ दिन बाद ही निर्देश जारी हो गए। तीनों कंपनियां निजी हैं, लेकिन इनके नाम के पहले एमपी स्टेट एग्रो की तर्ज पर 'एमपी' लगा हुआ है। इस कारण कई लोग इन्हें सरकारी उपक्रम ही समझते रहे।
कैबिनेट और वित्त विभाग से भी नहीं पूछा
इस जल्दबाजी में मेहदेले यह भूल गईं कि कैबिनेट के फैसले में बदलाव के लिए उसे मंत्री परिषद में दोबारा ले जाना जरूरी है। यही नहीं, महिला बाल विकास विभाग ने वित्त विभाग की भी कोई राय नहीं ली। विभागीय सूत्रों के अनुसार, इसके बाद ही दलिया सप्लाई में बड़े ठेकेदारों का दबदबा बढ़ने लगा। मंत्री ने कैबिनेट का फैसला बदलकर मप्र शासन के नियम 11 (एक) और नियम 7 के आठवें निर्देश का उल्लंघन किया।
घोटाले के खेल में अहम हैं ये 16 किरदार
- रवींद्र चतुर्वेदी, जीएम, एमपी स्टेट एग्रो, 1984 से निगम में। पाठ्य पुस्तक निगम में भी रहे। विभागीय जांचें हुईं।
- वेंकटेश धवलएमपी स्टेट एग्रो का एजेंडा तय करते हैं। 30 जून को रिटायरमेंट के बाद तुरंत संविदा नियुक्ति मिली।
- अक्षय श्रीवास्तव और हरीश माथुर, आईसीडीएस के हुनरमंद अफसर। माथुर 20 साल से एक ही सीट पर हैं।
- राजीव खरे और गोविंद रघुवंशी, क्वालिटी चेक करने वाले एडी। पोषाहार की न डिग्री है, न योग्यता।
- आरपी सिंह, स्थापना शाखा में जेडी। छह साल से हैं।
- छह सीडीपीओ, फील्ड की पोस्ट है। 10-12 साल से जमे हैं। हरीश माथुर इनमें से एक हैं। इनकी आड़ में छह और सीडीपीओ यहां कई सेक्शन्स में लाए गए।