कश्मीर: पकिस्तान की दोहरी चाल

राकेश दुबे@प्रतिदिन। कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की तरफ से एक प्रस्ताव भी आ गया|  कश्मीर मसले पर सचिव स्तरीय भारत-पाकिस्तान वार्ता के इस प्रस्ताव में कहा गया कि कश्मीर मसले को सुलझाने के लिए भारत और पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय रूप से वचनबद्ध हैं। ऐसे में, जरूरी है कि इस पर वार्ता शुरू की जाए। वैसे पाकिस्तान को भी यह पता है कि ऐसे प्रस्ताव का फिलहाल कोई अर्थ नहीं है। जो हालात फिलहाल कश्मीर में हैं, उनमें भारत उसका यह प्रस्ताव स्वीकार करने वाला नहीं है। लेकिन यह प्रस्ताव पेश करके पाकिस्तान एक तरह से दोहरी चाल चल रहा है।

एक तरफ तो वह कश्मीर में आतंकवाद को हर तरह से बढ़ावा दे रहा है, और दूसरी तरफ वह दुनिया को दिखाने की कोशिश कर रहा है कि पाकिस्तान कश्मीर समस्या का शांतिपूर्ण हल चाहता है। इस प्रस्ताव में वार्ता को शुरू करने की गंभीरता उतनी नहीं है, जितना कि दुनिया को दिखाने का भाव है। पाकिस्तान अगर सचमुच वार्ता शुरू करने के लिए गंभीर होता, तो भारत की चिंताओं को दूर करने की कोशिश पहले करता, विश्वास बहाली के बगैर न तो दोनों देशों में सार्थक वार्ता शुरू हो सकती है और शुरू हो भी जाए, तो कहीं पहुंचेगी नहीं।

ऐसे प्रस्ताव का ठुकरा दिया जाना लगभग तय था और भारत ने यही किया। दोनों देशों के बीच कश्मीर की समस्या है और यह बातचीत से ही सुलझ सकती है, इससे भारत ने कभी इनकार नहीं किया है। लेकिन ऐसी कोई भी बातचीत आपसी विश्वास के माहौल में ही हो सकती है। सीमा पार का आतंकवाद दोनों देशों को न सिर्फ पास आने से रोकता है, बल्कि उनमें परस्पर विश्वास भी नहीं बनने देता। ऐसे माहौल में वार्ता का कोई अर्थ नहीं। इसीलिए भारत का मानना है कि आतंकवाद फिलहाल दोनों देशों के बीच की सबसे बड़ी समस्या है और जब तक हम इसे खत्म नहीं कर लेते, किसी दिशा में आगे नहीं बढ़ा जा सकता। लेकिन पाकिस्तान आतंकवाद पर बात नहीं करना चाहता, क्योंकि वह इसका इस्तेमाल हमेशा से विदेश नीति के एक औजार के रूप में करता रहा है। पाकिस्तान की रणनीति को इससे भी समझा जा सकता है कि जिस दिन उसने भारत के सामने वार्ता का प्रस्ताव रखा, ठीक उसी दिन उसने आतंकी सरगना हाफिज सईद को टेलीविजन पर दिखाए जाने पर लगी पाबंदी भी हटा ली।

वैसे भी, पाकिस्तान ने वार्ता को लेकर जो तर्क दिए हैं, वे भी बताते हैं कि वह इसे लेकर बहुत गंभीर नहीं है। उसका कहना है कि कश्मीर समस्या भारत और पाकिस्तान के बंटवारे का ऐसा एजेंडा है, जो सिरे नहीं चढ़ा। साथ ही उसने यह भी कहा है कि कश्मीर समस्या का समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुसार होना चाहिए। इस मामले में उसने संयुक्त राष्ट्र के जिस प्रस्ताव का जिक्र किया है, वह कहता है कि समाधान की ओर बढ़ने से पहले पाकिस्तान को कश्मीर के उस हिस्से को खाली करके भारत के हवाले कर देना चाहिए, जिस पर उसने कब्जा कर लिया था। इसमें कश्मीर ही नहीं गिलगिट, बल्टिस्तान और स्कार्दू जैसे इलाके भी शामिल हैं। क्या पाकिस्तान इसके लिए तैयार है? वह भी उस समय, जब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लोग ही उसके खिलाफ बगावत पर उतर आए हैं। अगर वह संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को लेकर सचमुच गंभीर है, तो उसे पहले अपनी मंशा साफ करनी चाहिए। सच तो यह है कि वार्ता को लेकर पाकिस्तान खुद भी गंभीर नहीं है, वरना वह सार्थक वार्ता के लिए माहौल बनाने की पहल करता।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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