भोपाल। कलेक्टर स्तर के अधिकारियों से उम्मीद की जाती है कि वो किसी भी विवाद की स्थिति को शांत करने में सफल होंगे। यही उनका सिखाया और पढ़ाया भी जाता है परंतु राजधानी में हुई शांति समिति की बैठक में एडीएम रत्नाकर झा, नेताओं की तरह व्यवहार करते नजर आए। इस कदर उबले की हाथापाई पर उतर आए। यदि बैठक में एसपी एसपी अरविंद सक्सेना और अंशुमान सिंह ना होते तो बड़ा विवाद हो जाता।
मामला शांति समिति के एक सदस्य प्रमोद नेमा की उपस्थिति से शुरू हुआ। उन्होंने त्यौहारी सीजर में पानी की सप्लाई का मुद्दा उठाया। कलेक्टर ने इस पर आपत्ति उठाते हुए प्रमोद नेमा को निशाने पर लेते हुए कहा कि 'आप शांति समिति के सदस्य नहीं हैं, आपको बुलाया किसने है? इससे पहले कि प्रमोद नेमा कुछ बोल पाते एडीएम रत्नाकर झा ने इस चिंगारी को हवा दे दी। बोले प्रमोद समिति सदस्य नहीं हैं। इस पर नेमा भड़क गए, बोले- 22 साल से इस बैठक में आ रहा हूं। आप तो 3 साल से यहां हैं, आपको क्या पता? हिंदू उत्सव समिति के अध्यक्ष कैलाश बैगवानी ने एडीएम के प्रति विरोध दर्ज कराया। इसके बाद नेमा ने बैठक में अपनी बात रखी। लेकिन मामला शांत नहीं हुआ।
बैठक खत्म होने पर नेमा ने सदस्यता का पत्र एडीएम को थमा दिया। पत्र देखकर एडीएम भड़क गए। बोले- जिस बाबू ने आपको सदस्यता का लेटर भेजा है, उसे सस्पेंड कर दूंगा... यह सुनते ही नेमा भी आपे से बाहर हो गए। दोनों के बीच तीखी नाेंकझोंक शुरू हो गई। मामला हाथापाई तक आ पहुंचा। तभी एसपी अरविंद सक्सेना और अंशुमान सिंह ने बीच-बचाव किया। यदि एसपी ना होते तो पता नहीं क्या होता।
यहां विषय यह नहीं है कि प्रमोद नेमा ने क्या प्रतिक्रिया की। उनसे मर्यादित आचरण की उम्मीद की जा सकती है परंतु एडीएम रत्नाकर झा के लिए मर्यादित आचरण उनकी ड्यूटी का हिस्सा है। यही उन्हें पढ़ाया गया है, इसीलिए वो एडीएम हैं। उन्हें ध्यान रखना होता है कि विवादों को कैसे शांत कराया जाए, यदि वो ही खुद विवाद करने लग जाएं, अपना नियंत्रण खो बैठें, तो ऐसा एडीएम किस काम का।