19वीं सदी की प्रशासनिक प्रणाली 21वीं सदी में नहीं चलेगी: नरेन्द्र मोदी

नई दिल्ली। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन के साथ ही जनता को 'भारत के कायाकल्प' की उम्मीद थी। लोग मोदी में भारत का भविष्य देख रहे थे, लेकिन शायद उन्होंने भारत की प्रचलित प्रथाओं को टटोलने का प्रयास किया। अब मोदी भी सहमत हैं कि ये 'तिनका तिनका विकास' काम नहीं चलेगा। इसलिए उन्होंने तय कर लिया है कि अब 'भारत का कायाकल्प' किया जाएगा। आज उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि 19वीं सदी की प्रशासनिक प्रणाली के साथ 21वीं सदी में काम नहीं किया जा सकता है।

यूं तो पिछले दो वर्षों में मोदी ने कई स्तरों पर परिवर्तन लाने की कवायद शुरू की है लेकिन वह इतने भर से संतुष्ट नहीं हैं। शुक्रवार को नीति आयोग की ओर से आयोजित भारत परिवर्तन व्याख्यान की शुरुआत करते हुए उनका तेवर साफ साफ बता रहा था कि वह अपनी सरकार के हर मंत्री और अधिकारी समेत पूरे समाज की सोच और कार्यप्रणाली में बदलाव को जरूरी मानते हैं।

खासकर युवा पीढ़ी की अपेक्षाओं को समाहित करने के लिए बड़े बदलाव की जरूरत है। उन्होंने साफ कहा, "रत्ती-रत्ती प्रगति से काम नहीं चलेगा। यदि भारत को परिवर्तन की चुनौतियों से निपटना है तो हमें हर स्तर पर बदलाव लाना होगा। हमें कानूनों में बदलाव करना है, अनावश्यक औपचारिकताओं को समाप्त करना है, प्रक्रियाओं को तेज करना है और प्रौद्योगिकी अपनानी है। मानसिकता में भी बदलाव जरूरी है और यह तभी हो सकता है जब विचार परिवर्तनकारी हों।"

पहल अगले हफ्ते से ही होः
हालांकि उन्होंने माना कि प्रशासनिक मानसिकता में बड़ा परिवर्तन तब आता है जब संकट की स्थिति हो। भारतीय लोकतंत्र स्थिर है। लिहाजा इसके लिए विशेष प्रयास करने होंगे। सरकार में यह दिखेगा भी। खुद प्रधानमंत्री ने सचिवों को सलाह दी है कि इस बैठक से आने वाले महत्वपूर्ण विचारों पर अगले हफ्ते से ही पहल होनी चाहिए। उन्हें ठोस नीतियों में बदलने की कोशिश होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि तीस साल पहले देशों की दृष्टि केवल अपने अंदर तक ही सीमित रहती होगी और वे समाधान अपने अंदर से ही ढूंढते रहे हों। पर आज सभी देश परस्पर निर्भर और एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। कोई देश अपने को दूसरों से अलग रखकर विकास नहीं कर सकता। हर देश को अपने काम को वैश्विक कसौटियों पर कसना होगा। किसी ने ऐसा नहीं किया तो वह पीछे छूट जाएगा।

नीति आयोग से अपेक्षाएं:
मोदी ने कहा कि एक समय माना जाता था कि विकास पूंजी और श्रम की उपलब्धता पर निर्भर करता है, पर आज संस्थानों और विचारों की गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण हो गई है। कुछ इसी सोच से पिछले साल नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर ट्रांसफार्मिग इंडिया आयोग (नीति आयोग) नाम से एक नई संस्था बनाई गई।

इसका काम देश-विदेश के विशेषज्ञों के साथ सहयोग कर बाहर से प्राप्त विचारों को भी सरकार की प्रमुख नीतियों के साथ जोड़ने का है। मोदी ने कहा कि इस संस्था को बाकी दुनिया, बाहरी विशेषज्ञों और नीतियों को लागू करने वालों के साथ भारत सरकार के संपर्क सूत्र की भी भूमिका निभानी है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि सत्ता संभालने के बाद से वे बैंकरों, पुलिस अधिकारियों और सरकारी सचिवों के साथ खुल कर विचार-विमर्श करते रहे हैं और इससे निकले किसी भी तरह के विचार को नीतियों में शामिल किया जा रहा है।

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