नई दिल्ली। पुलिस निजी मानहानि के मामलों की जांच नहीं कर सकती और ना ही मजिस्ट्रेट ऐसा कोई आदेश पुलिस को दे सकते हैं, क्योंकि ऐसा मामला सबसे पहले शिकायतकर्ता को साबित करना होता है। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई 2016 को राहुल गांधी के खिलाफ महाराष्ट्र पुलिस को जांच के लिए मिले मजिस्ट्रेट के आदेश में खामी पाते हुए दिया।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की पीठ ने कार्यवाही की शुरूआत में मानहानि कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी और राहुल गांधी द्वारा दायर याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर सुनाए गए पिछले फैसले का जिक्र किया और कहा कि न्यायिक मजिस्ट्रेट पुलिस से निजी मानहानि शिकायत की जांच के लिए नहीं कह सकते।
पीठ ने राहुल के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए पुलिस से कहने के महाराष्ट्र की निचली अदालत के आदेश में पहली नजर में खामियां पाईं और कहा कि मामला ‘खारिज’ करने के बजाय, वह मामले को वापस निचली अदालत के पास भेज सकती है। पीठ ने कहा, ‘हमने सुब्रमण्यम स्वामी मामले में कहा है कि पुलिस की निजी आपराधिक शिकायतों में कोई भूमिका नहीं है जो कुछ भी साबित करना है, यह व्यक्ति (शिकायतकर्ता) द्वारा खुद साबित किया जाना चाहिए। मजिस्ट्रेट पुलिस से रिपोर्ट नहीं मांग सकते।
पीठ ने कांग्रेसी नेता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से आपराधिक मानहानि मामलों में पुलिस और मजिस्ट्रेटों की शक्तियों को लेकर सुब्रमण्यम स्वामी मामले में न्यायमूर्ति मिश्रा द्वारा लिये गये फैसले के संबंधित हिस्से पढ़ने को कहा। इसमें कहा गया, ‘पुलिस की आपराधिक मानहानि में कोई भूमिका नहीं है। वह प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकती और मजिस्ट्रेट दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं 156 (3) और 202 के तहत पुलिस से जांच रिपोर्ट नहीं मांग सकते। मजिस्ट्रेट को खुद आरोपों की जांच करनी होती है। यह कुल मिलाकर एक अलग प्रक्रिया है।’
यह है मामला
आरएसएस पर महात्मा गांधी की हत्या का कथित रूप से आरोप लगाने संबंधी टिप्पणियों के लिए मानहानि शिकायत का सामना कर रहे राहुल ने शीर्ष अदालत से इसे निरस्त करने का अनुरोध किया है।