नम्रता हत्याकांड: हर कोई चुप क्यों हो जाता है

भोपाल। नम्रता डामोर का हत्यारा ऐसे कितना पॉवरफुल है कि जांच करने वाला हर कोई चुप हो जाता है। या तो वो जिंदा रहते हुए चुप हो जाता है या फिर जांच के दौरान बीमारी या एक्सीडेंट से मर जाता है, जैसे दिल्ली का पत्रकार अक्षय सिंह मर गए। इस हत्याकांड में शुरू से अब तक सब चुप ही होते रहे हैं। इन दिनों सीबीआई चुप है, क्योंकि जिन दिग्गज डॉक्टरों ने उसने ओपीनियर मांगा था, वो सारे डॉक्टर भी चुप हैं। 

व्यापमं घोटाले से जुड़ी नम्रता डामोर का मेडिकल में एडमिशन, कॉलेज ट्रांसफर और मौत सबकुछ रहस्यमय है। उसका शव 7 जनवरी 2012 को उज्जौन के शिवपुरा-भेरूपुर रेलवे ट्रैक पर मिला था। उसका एडमिशन ग्वालियर में कराया गया था, बाद में इंदौर कॉलेज में ट्रांसफर हो गया। घटना के दिन वो ग्वालियर जाने के लिए निकली थी, लेकिन जबलपुर वाली ट्रेन में बैठ गई। लाश मिली तो लगा एक्सीडेंट है, लेकिन पीएम रिपोर्ट में हत्या बताई गई। पुलिस ने इसे आत्महत्या करार दिया, फिर डॉक्टरों ने भी आत्महत्या की रिपोर्ट बनाई और केस बंद कर दिया गया। जांच की मांग उठी तो फिर जांच शुरू की गई और बंद कर दी गई। 

नम्रता की मौत कितनी हाईप्रोफाइल थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विरोधियों ने मप्र की मीडिया पर भी भरोसा नहीं किया। टीवी चैनल आजतक दिल्ली को टिप दी गई। वहां से पत्रकार अक्षय सिंह पड़ताल करने आए। पड़ताल पूरी होने को ही थी कि उनकी भी मौत हो गई। इसके बाद आजतक भी चुप है। बाकी बची पड़ताल के लिए दूसरा पत्रकार भी नहीं भेजा गया। 

सोशल मीडिया पर हंगामा हुआ तो दवाब बना। सीबीआई ने भी हत्या का केस फाइल करके जांच शुरू तो की लेकिन सीबीआई भी चुप हो गई। लोग सीबीआई से उपन्यासों के जासूस की तरह छानबीन की उम्मीद करते हैं जो हर हाल में पूरा सच खोज ही लाता है परंतु इस मामले में सीबीआई, लोकल पुलिस जैसी कार्रवाई कर रही है। एक कदम चलती है फिर चुप हो जाती है। सीबीआई ने नम्रता की मौत हत्या है या आत्महत्या यह पता लगाने के लिए दिल्ली के एम्स, राममनोहर लोहिया और सफदरजंग अस्पताल के विशेषज्ञों के पास केस हिस्ट्री को ओपिनियन लेने के लिए भेजा था, लेकिन वहां के तमाम दिग्गज डॉक्टर भी चुप हो गए। एक महीना गुजर गया जवाब नहीं भेजा। 

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