आरक्षण के विरुद्ध कोर्ट मे हुई इस बहस को एक बार जरूर पढ़ें

शोऐब सिद्बीकी। मित्रो, बात वर्ष 1994 की है। मण्डल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के प्रस्ताव के बाद आरक्षण की आग पूरे देश मे फैल गई। अनुसूचित जाति व जनजतियों के लिए 50% तक आरक्षण शिक्षा संस्थानो और अन्य क्षेत्रों मे तय कर दिया गया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सामान्य वर्ग के विद्यार्थी भी इससे बहुत प्रभावित हुए क्योंकि 50% आरक्षण का अर्थ है कि मान लो पहले विश्वविद्यालय मे 100 सीटों के कोटे पर विद्यार्थियों की प्रतिभा अनुसार प्राप्त किए गए अंको के हिसाब से दाखिला होना था उसमे से 50 सीटें सीधे तौर पर अनुसूचित जनजतियों, पिछड़े वर्ग के लोगो के लिए आरक्षित कर दी गई, और सामान्य वर्ग के लिए के लिए मात्र 50 सीटें ही बची।

तब कुछ विद्यार्थियों ने योगेश जी से इस आरक्षण के मुद्दे पर सहायता की अपेक्षा की, तो योगेश जी ने इलाहबाद हाईकोर्ट मे एक याचिका न्यायमूर्ति आरएस धवन की अदालत मे दाखिल की। (अब ध्यान से पढ़ें)

सरकार की तरफ से अदालत मे यह तर्क दिया गया की हमने तो आरक्षण संविधान के अनुसार ही लागू किया है तो योगेश जी ने कहा की संविधान के अनुछेद 15 जिसमें अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजतियों और पिछड़े वर्ग के सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के उन्नति के लिए आरक्षण की बात कही गई है पहले उसको समझ लिया जाए कि उसमे आखिर कहा क्या गया है ?

अनुछेद 15 (4) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।

तो मित्रो संविधान के अनुछेद 15(4) मे स्पष्ट रूप से ये उल्लेख है की अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजतियों एंव पिछड़े वर्ग के लोगो के सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए सरकारें विशेष प्रबंध की व्यवस्था करेगी (आप ये वाक्य दुबारा पढ़िए) 'अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजतियों एंव पिछड़े वर्ग के लोगो के आरक्षण के लिए सरकारें ‘विशेष प्रबंध की व्यवस्था’ करेगी' अर्थात जो सामान्य व्यवस्था चल रही है उसमे कोई हस्ताक्षेप नहीं किया जाएगा। 

इसका अर्थ यह है कि मान लो किसी विश्वविद्यालय मे 100 सीटें है तो उन सीटों मे सामान्य कोटे से ही दाखिला भरा जाएगा, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजतियों एंव पिछड़े वर्ग के लोगो के लिए सरकार को विशेष व्यवस्था करनी पड़ेगी। अर्थात सामान्य व्यवस्था के अनुसार जो 100 सीटें है वो वैसे की वैसे ही रहेगी आरक्षण के लिए सरकार को 100 से अतिरिक्त सीटों के लिए विशेष व्यवस्था करनी पड़ेगी।

इस प्रकार योगेश जी ने अदालत मे स्पष्ट किया कि आरक्षण के सन्दर्भ में जो आदेश दिया है वो पूरी तरह से असंवैधानिक है, और सरकार के आदेश मे सभी शिक्षा संस्थाओ मे 50 फीसदी सीटें उक्त वर्ग के लिए आरक्षित कर एक वर्ग को सांरक्षित करने के बहाने दूसरे वर्ग को उसके अधिकार से वंचित रखा गया है यह भी असंवैधानिक है।

इस प्रकार अदालत ने योगेश जी के तर्को को सही माना और फैसला योगेश जी के पक्ष मे सुनाया। तो मित्रो अंत इस लेख के उद्देश्य के माध्यम से आपको ये बताना है की सपूर्ण भारत मे शिक्षा संस्थाओ मे जो आरक्षण दिया जा रहा है वह पूर्ण रूप से असंवैधानिक है, देश के नेता अपनी मन मर्जी से इसे लागू कर रहें है। राष्ट्रवादी लोगो को इस पर एकमत होना चाहिए।
शोऐब सिद्बीकी
प्रवक्ता
सपाक्स, मध्यप्रदेश

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