अधिकारियों ने दलित कर्मचारी को वेतन नहीं दिया, कैंसर से मर गया

भोपाल। मप्र की बिजली कंपनियों में अंधेरगर्दी के कई उदाहरण सामने आते रहते हैं। उपभोक्ताओं के साथ साथ कर्मचारी वर्ग भी अधिकारियों की तानाशाही का शिकार हो रहे हैं। शिवपुरी में कैंसर से पीड़ित एक लाइनमैन को तो बिजली कंपनी के अधिकारियों ने बीमार ही नहीं माना और उसका 10 महीने का वेतन रोक दिया। इतना ही नहीं उसका तबादला भी कर दिया। पैसे के अभाव में कर्मचारी इलाज नहीं करा पाया और उसकी मौत हो गई। 

कर्मचारी का नाम मिश्रीलाल जाटव है जिसकी 13 जुलाई को मौत हो गई। वो लम्बे समय से कैंसर से पीड़ित था और इलाज करा रहा था। इसकी जानकारी उसने अपने अधिकारियों को भी दे दी थी। मृत कर्मचारी के बेटे बहादुर जाटव का आरोप है कि उप महाप्रबंधक चंद्र कुमार ने उनकी कोई मदद नहीं की, उल्टा वेतन रोक दिया। वो 10 महीने तक गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन किसी ने सुनवाई नहीं की। वेतन ना मिल पाने के कारण समय पर इलाज नहीं कराया जा सका। इतना ही नहीं अधिकारियों ने सवाल जवाब करने पर उसका तबादला भी कर दिया। 

21 जून 2016 को कैंसर पीड़ित मिश्रीलाल जाटव एंबुलेंस में सवार हो 300 किमी का सफर तय करके भोपाल मानवाधिकार आयोग पहुंचा और अपनी तमाम परेशानियां बताईं। कर्मचारी ने अपनी बीमारी के सारे दस्तावेज भी प्रस्तुत किए और वो खुद भी प्रत्यक्ष सामने था। मानवाधिकार आयोग ने जब इस बारे मे बिजली कंपनी के अधिकारियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि कर्मचारी को केवल वायरल फीवर है। वो काम पर नहीं आ रहा है, इसलिए वेतन रोक दिया गया। 

आयोग की कार्रवाई के बाद मिश्रीलाल का रुका वेतन तो जारी हो गया परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। टाटा मेमोरियल के डॉक्टरों ने बताया कि वो कम से कम 4 महीने देरी से आए हैं। यदि पहले आ जाते तो मरीज को बचाया जा सकता था। 

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