'माई का लाल' ने हराए मप्र के तीनों चुनाव

उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर/भोपाल। मप्र में भाजपा एक साथ तीनों निकाय चुनाव हार गई। पिछले 15 साल में मप्र के लिए यह सबसे शर्मनाक घटनाक्रम है। तीनों चुनाव अलग अलग शहरों में थे। मैहर, सतना जिले में तो मंडीदीप भोपाल महानगर के पास और ईसागढ़ अशोकनगर में। तीनों के बीच लम्बी दूरियां थीं, कोई एक लहर तीनों को एक साथ प्रभावित नहीं कर सकती थी परंतु फिर भी भाजपा तीनों ही हार गई। आइए समझने की कोशिश करते हैं क्या कारण रहे:  

प्रभु शिवराज का दिनरात गुणगान करते रहने वाले नंदूभैया का कहना है कि प्रत्याशी चयन में चूक हो गई। समझ नहीं आया। यह कैसी चूक थी तो तीनों जगह हो गई। उनके प्रभु के सिवा कौन था जिसने प्रत्याशी चयन कर डाला। नंदूभैया तो बड़े ताकतवर हैं। अमित शाह के मना करने के बाद भी संजय पाठक को मंत्री बना दिया। फिर गलती कैसे हो गई। हो भी गई थी तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता क्यों चला। पहले तो जीत के बड़े बड़े दावे किए जा रहे थे। 

भाजपा के कुछ नेताओं का मानना है कि पार्टी में दो वर्ग बन गए हैं। एक जो सत्ता में हैं और दूसरे जो बाहर हैं। इनके बीच खाई बढ़ती जा रही है। हमारे पंडितों का कहना है कि यह खाई केवल भाजपा में नहीं बढ़ रही बल्कि पूरे मप्र में बढ़ रही है। इस सरकार ने पूरे प्रदेश को 2 हिस्सों में बांट दिया है। एक आरक्षित वर्ग, दूसरा 'माई का लाल' वर्ग जो न्यायपूर्ण आरक्षण की वकालत करता है। 

शिवराज पर भारी पड़े विपिन भार्गव 
मंडीदीप केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज, मुख्यमंत्री चौहान एवं पटवा का क्षेत्र है। यहां पटवा समर्थक रहे बागी प्रत्याशी विपिन भार्गव के कारण भाजपा हार गई। अब बताइए जहरा, क्या विपिन भार्गव इतने भारी हैं कि सुषमा स्वराज, शिवराज सिंह और सुरेन्द्र पटवा जैसे दिग्गज हल्के पड़ गए। संगठन के कण कण का हिसाब किताब रखने वालों को विपिन भार्गव के वजन का अनुमान पहले से नहीं था क्या। 

दलबदलू त्रिपाठी ने रंग दिखाया 
मैहर में प्रत्याशी चयन में भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं को भरोसे में नहीं लिया। धीरज पांडे को भोपाल से थोप दिया गया। कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाए तो उन्हें उन्हें दुत्कार दिया गया। साफ साफ कहा गया कि 'तुम्हारे चुप बैठ जाने से हम हार नहीं जाएंगे। चुनाव में जीत तुम्हारे कारण नहीं मिलती।' स्वभाविक है, भाजपा का श्रमजीवी कार्यकर्ता नाराज हो गया। इसके अलावा भोपाल वालों ने जिस दलबदलू विधायक नारायण त्रिपाठी को गले लगाया था। सीएम ने उसको जिताने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया था। उसी ने अपना रंग दिखा दिया। बसपा प्रत्याशी महेश चौरसिया से उनके नजदीकी संबंध रहे हैं।

ईसागढ़ में सिंधिया का जलवा कायम 
मंडीदीप में जहां भाजपा अपने प्रत्याशी को दूसरा चुनाव नहीं जिता पाई। सिंधिया ने अपने प्रत्याशी को फिर काबिज करा दिया। गुना की ईसागढ़ नगर परिषद पर कांग्रेस के भूपेंद्र द्विवेदी स्वयं दूसरी बार जीते हैं। एक बार उनकी पत्नी भी अध्यक्ष रह चुकी हैं। यह कांग्रेस की परंपरागत सीट है और द्विवेदी पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नजदीकी माने जाते हैं। सिंधिया ने चुनाव में स्वयं रुचि ली और प्रचार किया।

सिर्फ राजनीति ही नहीं भोपाल हिन्दू उत्सव समिति में भी हारी भाजपा
हिन्दुओं पर तो भाजपा का कॉपीराइट है। श्रीराम का उन्होंने ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड करा रखा है परंतु भोपाल के हिन्दू भी भाजपा से दूर हो गए। हिन्दू उत्सव समिति के चुनाव में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। मप्र भाजपा के चतुर चाणक्यों ने यहां भी नारायण सिंह कुशवाहा को थोपा लेकिन सीएम के नजदीकी रहे भाजपा के जिलाध्यक्ष एवं महापौर आलोक शर्मा को ही यह बेतुका निर्णय रास नहीं आया। उन्होंने कांग्रेस समर्थित रहे कैलाश बेगवानी का साथ दिया। 

मप्र में भाजपा हार रही है या शिवराज सिंह एंड फ्रेंड्स
यहां बड़ा सवाल यह है ​कि तमाम चुनाव भाजपा हार रही है या शिवराज सिंह एंड फ्रेंड्स प्राइवेट लिमिटेड। क्योंकि तीनों निकाय चुनावों एवं हिंदू उत्सव समिति के चुनाव में कार्यकर्ताओं वाली भाजपा तो प्रत्याशियों के साथ थी ही नहीं। हां, कुछ पॉवरफुल पदाधिकारी जरूर थे जो शिवराज सिंह एंड फ्रेंड्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर्स माने जाते हैं। 

कहीं ये 'माई का लाल' का कमाल तो नहीं
वो पॉवरफुल हैं। हाईकमान उनसे रिपोर्ट मांगता है। वो कुछ भी कह सकते हैं परंतु एक बड़ा प्रश्न यह भी है कि कहीं ये चारों चुनावी नतीजे 'माई का लाल' का कमाल तो नहीं। 'माई का लाल' से तात्पर्य केवल कर्मचारियों की एक सभा में दिए बयान से नहीं है, बल्कि सीएम शिवराज सिंह चौहान के बदलते व्यवहार से हैं। पहले मप्र एक मंदिर और शिवराज उसके पुजारी हुआ करते थे। फिर वो मप्र के प्रथम सेवक बने। आजकल 'माई का लाल' करने लगे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि वो सीधे लोगों का ईगो हर्ट कर रहे हैं। उन्हे समझ लेना चाहिए, ईगो की लड़ाई में लोग फायदा नुक्सान भी नहीं देखते। ईगो तो लंका वाले नरेश का भी नहीं रहा। बुधनी वालों की क्या बिसात। 

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