नई दिल्ली। सातवें वेतन आयोग को मंजूरी मिलने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की ओर से निचले रैंक पर काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को अधिक फायदा मिलने वाला है। सरकार ने यह निर्णय इसलिए लिया कि निचले व मध्यम स्तर के बीच के वेतन में अंतर को पाटा जा सके। गौर करने वाली बात है कि इससे पहले आने वाले सभी वेतन आयोगों में न केवल उच्च केंद्रीय कर्मियों के वेतन इजाफे के बारे में विचार किया गया बल्कि सबसे अधिक और न्यूनतम वेतन के बीच के अंतर के औसत को भी देखा गया। 2006 में इस औसत में अंतर 1:12 था। कुल 47 लाख सरकारी कर्मचारियों व 52 लाख पेंशन भोगियों को इस वेतन आयोग के सिफारिशों से लाभ मिलेगा।
कब-कब बने वेतन आयोग और किसने की अध्यक्षता
पहले वेतन आयोग का गठन जनवरी, 1947 में हुआ और इसने भारत की अंतरिम सरकार को अपनी रिपोर्ट मई में सौंप दिया। श्रीनिवास वरदाचारियार की अध्यक्षता में यह हुआ था।
दूसरे वेतन आयोग का गठन स्वतंत्रता के दस साल बाद अगस्त,1957 में हुआ था और दो सालों बाद इसने अपनी रिर्पोट दी। यह वेतन आयोग जगन्नाथ दास की अध्यक्षता में गठित हुई।
तीसरे वेतन आयोग का गठन 1970 में हुआ और इसने 3 साल बाद 1973 में अपनी रिपोर्ट दी। रघुबीर दयाल की अध्यक्षता में आयोग ने ऐसे प्रस्ताव दिए जिसके लिए सरकार पर 1.44 बिलियन की लागत आयी थी।
पीएन सिंघल की अध्यक्षता वाले चौथे वेतन आयोग का गठन जून 1983 में हुआ और इसने चार वर्षों में तीन चरणों के जरिए अपनी रिपोर्ट पेश की ओर सरकार पर 12.82 बिलियन का बोझ था।
पांचवे वेतन आयोग ने जस्टिस रत्नावेल पांडियन की अध्यक्षता में 2 मई 1994 को काम करना शुरू किया।
जुलाई 2006 में कबिनेट ने छठे वेतन आयोग के लिए अप्रूवल दे दिया। जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में आयोग ने 2008 के अप्रैल माह में अपनी रिपोर्ट दी।
25 सितंबर, 2013 को वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने घोषणा किया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सातवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी। सातवें वेतन आयोग की अध्यक्षता जस्टिस एके माथुर ने की।