IFS अफसरों ने सरकार को धोख में रख विभाग में पद बढ़ा लिए

मनोज तिवारी/भोपाल। मप्र में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के अफसरों की पद वृद्धि को लेकर गंभीर मामला सामने आया है। इन अफसरों ने केंद्र व राज्य सरकार को धोखे में रखकर एपीसीसीएफ के पद बढ़ा लिए हैं। यहां तक कि ये विधानसभा को भी गलत जानकारी देने से नहीं चूके। अब अफसर वन अकादमी के गठन को लेकर उतावले हैं। क्योंकि एक चहेते अफसर को पीसीसीएफ बनाना है।

विभाग ने केंद्र सरकार से वर्ष 2010 में 3 साल के लिए एपीसीसीएफ के 6 और वर्ष 2012 में दो साल के लिए 5 अस्थाई पद सशर्त मांगे थे। शर्त यह थी कि इस अवधि में 9 अफसर रिटायर हो जाएंगे, जिनके विरुद्ध अतिरिक्त पद समायोजित कर दिए जाएंगे। इस हिसाब से 2013 और 2014 में अस्थाई पद समाप्त हो चुके हैं।

फिर भी 2014 में कैडर रिव्यू के लिए 21 (10 स्थाई और 11 अस्थाई) स्थाई पद बताकर केंद्र सरकार को 35 पदों का प्रस्ताव भेजा गया और केंद्र से 25 पद मिल गए। उल्लेखनीय है कि आईएफएस का सेटअप 2003 में रिव्यू हुआ था। तब एपीसीसीएफ के पद 4 से बढ़ाकर 10 किए थे। 2008 में सभी पद भरे थे, तब भी 11 अफसरों को एपीसीसीएफ बना दिया। वर्तमान में प्रदेश में 296 आईएफएस अफसर पदस्थ हैं।

इसलिए तोड़ दिए नियम
वर्ष 2008 में 1979 बैच के 11 अफसरों को पदोन्न्त करने तत्कालीन आला अफसरों ने सारे नियम तोड़ दिए। इन 11 अफसरों में चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन रवि श्रीवास्तव, अगले विभाग प्रमुख डॉ. अनिमेष शुक्ला और पीसीसीएफ जितेंद्र अग्रवाल शामिल हैं। सूत्र बताते हैं कि जीएडी और कैबिनेट से मंजूरी नहीं ली गई। इतना ही नहीं, 27 सितंबर-08 को पदोन्न्ति आदेश जारी हुआ, लेकिन केंद्र को इसकी जानकारी नहीं दी।

दो साल बाद केंद्र से मांगे पद
हैरानी की बात है कि 11 अफसरों को 2008 में पदोन्न्ति दी गई और अस्थाई पद 2010 और 2012 में मांगे गए। ऐसा 1980 बैच के अफसरों के दबाव में करना पड़ा। दरअसल, बगैर पद के 1979 बैच के अफसरों की पदोन्न्ति हुई, तो इन अफसरों ने भी पदोन्न्ति की मांग रख दी और फिर आनन-फानन में केंद्र से अस्थाई पद मांगे गए।

विधानसभा को भी दी गलत जानकारी
विभाग ने विधानसभा के बजट सत्र में अपना प्रशासकीय प्रतिवेदन रखा है। जिसमें पीसीसीएफ के 5 पद बताए गए हैं। जबकि असल में 1+4 पद स्वीकृत हैं। यानि पीसीसीएफ (हॉफ) पद के विरुद्ध नॉन कैडर में पद नहीं रखा जा सकता है। इस हिसाब से प्रदेश में 9 पीसीसीएफ होने चाहिए, लेकिन 10 हैं।

पद बढ़े, परफार्मेंस घटा
जंगल के बेहतर प्रबंधन और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए जरूरी बताकर आईएफएस के पद बढ़ाए गए हैं, लेकिन पिछले 16 साल की स्थिति देखें, तो प्रदेश में सिर्फ अफसरों के पद बढ़े हैं। बाघों की संख्या, वनोपज के उत्पादन में लगातार गिरावट आई है। भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2000 में प्रदेश में 710 बाघ थे, जो 2014 में 308 रह गए। 2000 में 21 लाख मानक बोरा तेंदुपत्ता संग्रहण होता था, जो 2016 में 15.50 लाख मानक बोरा रह गया। ऐसे ही 2006 में प्रदेश में बांस का उत्पादन 2.66 लाख नोशनल टन था, जो 2016 में 41 हजार नोशनल टन रह गया।

मैदानी अमले के 4300 पद खाली
हैरत की बात है कि आईएफएस अफसरों के पद लगातार बढ़ रहे हैं और मैदानी अमला कम हो रहा है। सरकार ने इनके पदों में कटौती नहीं की है। बल्कि कर्मचारियों के सेवानिवृत्त होने से खाली पदों को नहीं भरा। वर्तमान में वनरक्षक, वनपाल, उप वन क्षेत्रपाल और वन क्षेत्रपाल के 4300 पद खाली हैं। इनमें भी वनरक्षकों के 14,024 में से 3200 पद खाली हैं। ऐसे में जंगलों और वन्यप्राणियों की सुरक्षा कैसे संभव है?

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