हर तीसरा सांसद किसान, फिर भी खेती बदहाल

राकेश दुबे@प्रतिदिन। सूखे और बाढ़ के चलते देश में हर साल फसल का एक बड़ा हिस्सा बरबाद होता है| किसान कर्ज की दलदल में फंसता है, आत्महत्या करने को विवश होता है| 2012 में 13,754, 2013 में 11,772 और 2014 में 12,360 किसान और खेतिहर मजदूर खुदखुशी करने को मजबूर हुए थे|  ये सरकारी आंकड़े हैं, हकीकत इससे कहीं ज्यादा भयावह है| दुर्भाग्यवश इन किसानों को समय पर पर्याप्त मदद तक नहीं मिल पाती| छत्तीसगढ़ में पिछले तीन साल में 309 किसानों ने आत्महत्या की, लेकिन सरकारी मदद मिल सकी केवल 3 को| ऐसे न जाने कितने छत्तीसगढ़ इस देश में हैं, वैसे यह उस मुल्क की तस्वीर है, जहां हर तीसरे माननीय सांसद खुद को किसान ही बताते हैं|

अफसरों की उदासीनता के बीच  योजनाओं  का बेहतर क्रियान्वयन एक बड़ा सवाल है| मौजूदा बीमा योजना कवरेज का दायरा केवल 23 फीसद है| ऐसे में इस कम प्रीमियम वाली बेहतर योजना के प्रति भी जागरूकता बढ़ाना किसी चुनौती से कम नहीं|हमारे मुल्क में करीब 25 फीसद खेती बटाई पर होती है, लेकिन बीमे का लाभ सीधे बटाईदार को दिलाने में अभी भी मुश्किल है| इस दिशा में राज्य सरकारों को नियम बनाने हैं| विशुद्ध राजनीतिक लाभ के आरोप के बावजूद योजना किसान हित की है| सवाल है कि करीब 18 लाख करोड़ रु. के सालाना बजट में 8,800 करोड़ रु. का प्रावधान करने में छह दशक क्यों बीत गए? यकीनन हम देर से आए हैं पर दुरुस्त आये हैं| यह बड़ी बात है|

मानवीय जीवन के साथ-साथ कृषि के लिहाज से भी बेहतर जल प्रबंधन पर विचार करना होगा; क्योंकि हमारे यहां भूजल की करीब 70 से 80 फीसद खपत अकेले सिंचाई में ही होती है| तब जबकि अभी तक हमारे मुल्क में बमुश्किल 45 फीसद खेती को ही सिंचाई नसीब हो पाई है| बाकी सब इंद्र देव की मेहरबानी पर ही निर्भर है, ऐसे में अगर मौजूदा व्यवस्था पर चलते हुए ही हर खेत को पानी पहुंचाने का चुनावी वादा पूरा किया तो समझिए हालात होंगे कैसे? पानी लाएंगे कहां से? जाहिर है अब बड़े बदलावों पर विचार करना ही होगा|गेहूं के मुकाबले गन्ने की खेती में 5 गुना ज्यादा पानी की खपत होती है, लिहाजा भीषण जल संकट वाले इलाकों में कम पानी वाली फसलों के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना होगा|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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