दलित युवती का पहले गैंगरेप किया, फिर गैंगस्टर बता मार डाला

यह कहानी गैर जिम्मेदार मीडिया का एक और उदाहरण है. बीते एक-दो महीनों के दौरान फर्रूखाबाद और आस-पास के जिलों में एक लेडी डॉन की कहानी खूब छापी गई. पुलिस के लिए वह लेडी डॉन थी. एक पिता के लिए अभागी बेटी. पुलिस रिकार्ड में गैंगस्टर थी, लेकिन हकीकत में रेप विक्टिम. मीडिया ने पुलिस की कहानी पर आंख बंद कर उसे लेडी डॉन घोषित करवाने में अपना पूरा योगदान दिया. 

नौ मई को लेडी डॉन मर गई. पुलिस कहती है, वह भागने की कोशिश कर रही थी, मां कहती है न्याय के लिए भटक रही थी. जवान बेटी की मौत पर मां-बाप ने सवाल उठाया, कहा- बेटी की मौत नहीं हुई, हत्या की गई है. इसके बाद पुलिस ने मामले को मर्डर केस में दर्ज किया.

इस देश की पुलिस किस तरह से हवा में अपराधी पैदा करती है और कैसे अपराधियों को सफेदपोश बना देती है, मीरा की कहानी इसका मुफीद उदाहरण है. फिलहाल इस मामले में एक बसपा नेता समेत सात लोगों को नामजद किया गया है. इसमें एक इंस्पेक्टर सहित पांच पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. अब जाकर इस मामले की जांच शुरू हुई है. एक और बात यह पीड़िता दलित थी, लेकिन इसकी हत्या पर भी दलितों के हिमायती चुप हैं?

आखिर कौन थी लेडी डॉन मीरा
पुलिस जिसे लेडी डॉन कहती थी वह फर्रुखाबाद के मलिकपुर गांव की रहने वाली मीरा जाटव थी. उम्र करीब 26 साल. फर्रुखाबाद के कमालगंज में एक ईंट भट्ठा है. बसपा नेता महेंद्र कटियार इसके मालिक हैं. मीरा के पिता रामदास जाटव इसी भट्ठे पर काम करते थे. 

मीरा भी अपने माता-पिता के काम में यदा-कदा हाथ बंटाती थी. पिता का आरोप है, एक दिसंबर 2014 को महेंद्र के बेेटे गुरदीप ने अपने एक दोस्त के साथ मीरा को अगवा कर उसका बलात्कार किया. दो दिन तक उन्होंने उसे बंधक बनाए रखा. बार-बार उसके साथ बलात्कार किया. किसी तरह वह बलात्कारियों के चंगुल से बच कर भाग निकली.

सुनिए मीरा की कहानी, बाप की जुबानी
मीरा के पिता का कहना है कि मीरा, गुरदीप के चंगुल से निकल कर छिपते-छिपाते वह कमालगंज थाने पहुंची. वहां उसने थानेदार को आपबीती सुनाई लेकिन उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी गयी. पुलिस वाले बोले, पहले अपने पिता को बुलाओ, तब देखेंगे. इस बीच गुरदीप थाने पहुंच गया.

आरोपी का रसूख और पुलिस की मिलीभगत के कारण मीरा के खिलाफ केस दर्ज हो गया. मीरा के ऊपर पेशेवर चोर होने का आरोप लगा दिया गया. गुरदीप ने बयान दिया कि मीरा उसके घर से दो फोन, एक पिस्टल और पर्स चुराकर भागी है. न कोई जांच, न पड़ताल. मीरा एक घंटे के अंदर जेल के भीतर डाल दी गई.

तीन माह बाद मिली बेल
मीरा तीन माह जेल में रही. मार्च में उसे बेल मिली. लेकिन, कुछ घंटे में ही गुरदीप की शिकायत पर पुलिस ने उसे फिर अरेस्ट कर लिया. इस बार मुकदमा दर्ज हुआ गैंगस्टर एक्ट के तहत. एक बलात्कार पीड़िता संगठित अपराध की आरोपी बन गई. पुलिस की जड़ों में घुसे भ्रष्टाचार ने एक दिहाड़ी मजदूर की बेटी को लेडी डॉन बना दिया. कमालगंज थाने के इतिहास में मीरा पहली युवती बनी जिस पर गैंगस्टर लगा.

...और फिर गिरफ्तारियों का सिलसिला
गैंगस्टर मीरा पैरवी के बाद जेल से छूटी. वकीलों की मदद से 14 जुलाई 2015 को कोर्ट के आदेश पर गुरदीप पर रेप का केस दर्ज हुआ लेकिन, ठोस सबूतों के अभाव में मामला खत्म हो गया. इसके बाद ब्लैकमेलिंग और धमकी के जुर्म में मीरा को तीसरी बार गिरफ्तार कर लिया गया. यह वो कहानी है जो मीरा के पिता रामदास ने हमें बताई.

आइए अब जानते हैं पुलिस की कहानी
बकौल पुलिस मीरा ने 2012 में जरायम की दुनिया में कदम रखा. कन्नौज में उसने एक वकील की रिवॉल्वर लूटी. पुलिस ने इसे बरामद भी किया. वह लुटेरों के गैंग की सरगना बन गई. इस दौरान उसने एक बैंक अफसर को ब्लैकमेल किया. इस मामले में रिपोर्ट भी दर्ज हुई.

बड़े साहब से मिलना नागवार गुजरा
इधर, गिरफ्तारी दर गिरफ्तारी से परेशान मीरा ने सोशल एक्टिविस्ट संजीबा से बात की. संजीबा ने सलाह दी कि बड़े पुलिस अफसरों से मिलो तब कुछ बात बनेगी. इसी 29 अप्रैल को मीरा कानपुर डीआईजी (रेंज) नीलभजा चौधरी से मिली. 

उन्हें सारी बात बतायी कि किस तरह से उसे एक झूठे मामले में तीन बार जेल भेजा जा चुका है. उसकी बात कोई सुनने को तैयार नहीं है. उसे गैंगस्टर घोषित कर दिया जबकि गुरदीप के केस से पहले उसका एक भी क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं है.

पुलिस के मुताबिक गुरसहायगंज में लूट के चार और फतेहगढ़ में एक केस गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज है। 

मीरा की डीआईजी रेंज से मुलाकात की भनक कमालगंज थाने की पुलिस को लगी. तो उसके होश उड़ गए. पुलिस ने जाल बिछाकर सदरियापुर गांव में 30 अप्रैल को एक बार फिर से मीरा को गिरफ्तार कर लिया गया. उसके पास से आधा किलो चरस की बरामदगी दिखाई. पुलिस के मुताबिक गुरसहायगंज में लूट के चार और फतेहगढ़ में एक केस गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज है.

30 तारीख को ही कोर्ट में पेश करने के बाद उसे वापस रात में जेल ले जाया जा रहा था. लेकिन, पुलिस के मुताबिक रास्ते में उसने भागने की कोशिश में जीप से छलांग लगा दी, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गई. 

उसे कानपुर के हैलट हॉस्पिटल में उसे भर्ती कराया गया. यहां वह 4 मई को कोमा में चली गई. डॉक्टर्स ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया. और अंतत: नौ मई को मीरा की मौत हो गई. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उसके शरीर और सिर पर गंभीर चोटें लगने की बात सामने आई है.

मीरा की मां कहती हैं, 'पुलिस और आरोपियों की कानपुर डीआईजी से शिकायत करके जब मीरा आ रही थी तब सालिगराम वर्मा, महेंद्र कटियार, गुरदीप, सिपाही नारायणी देवी और अंकेश कटियार उसे अपनी गाड़ी में उठा ले गए. जमकर मारा, पीटा और जब वह घायल हो गई तो कहानी गढ़ ली कि जीप से कूद गई.'

मीरा की मौत मामले में कमालगंज पुलिस ने बसपा नेता, उसके बेटे एवं कमालगंज के तत्कालीन थानाध्यक्ष सालिगराम वर्मा सहित सात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है. इसमें पांच नामजद हैं, जबकि दो अज्ञात. बसपा नेता महेंद्र का कहना है कि मुकदमा दर्ज होने की उन्हें कोई जानकारी नहीं है. फिलहाल मामले की जांच शुरू हो गई है.

कहां है दलित राजनीति करने वाले
इस पूरे हत्याकांंड का सबसे दुखद पहलू यह रहा कि किसी भी दल ने इसे इस आपराधिक कृत्य के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत महसूस नहीं की. सत्ताधारी दल को अगर छोड़ भी दें तो राज्य में बसपा दलितों की सबसे बड़ी पार्टी है उसने भी इसे छूने की जहमत नहीं उठाई. दलितों की आक्रामक राजनीति कर रही भाजपा भी बड़ी आसानी से चुप्पी साधे हुए है. बलात्कार की एक पीड़िता दलित महिला की मौत हो चुकी है, सूबे में दलित चेतना यात्राओं की धूम जारी है, अगले साल विधानसभा चुनाव है.
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