हत्या से भी जघन्य है गर्भस्थ शिशु की हत्या: कोर्ट

इंदौर। प्रेमिका की हत्या पर तो कोर्ट ने प्रेमी को सजा दी ही, लेकिन उससे भी बड़ा अपराध यह माना कि उसने गर्भ में पल रहे खुद के ही बच्चे को मौत के घाट उतार दिया। गुरुवार को ऐसे ही एक मामले में सेशन जज आरके गुप्त ने हत्यारे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

फैसले में उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि हत्यारे ने अजन्मे सात माह के बच्चे की भी हत्या की है इसलिए उसे 10 साल की सजा भी सुनाई जा रही है। वकीलों के मुताबिक इस केस को रेयर की श्रेणी में रखा जा सकता है। जिला कोर्ट के रूम नंबर 55 में दो साल से चल रही एक सुनवाई में गुरुवार को निर्णायक मोड़ मिला।

धार के बिल्लौर बुजुर्ग में रहने वाले मांगीलाल पिता लिंबा चौहान (28) ने प्रेमिका को मार डाला था। एजीपी संतोष चौरसिया के मुताबिक पुलिस ने 18 दिसंबर 2013 को गांव के पास ही जामनिया तालाब से युवती का शव बरामद किया था। उसे सात माह का गर्भ था।

पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि मांगीलाल का युवती से प्रेम संबंध था। वह गांव में कैसेट की दुकान चलता था। गर्भवती होने पर युवती ने शादी का दबाव बनाया तो मांगीलाल ने उसकी गला घोटकर हत्या की और शव तालाब में फेंक दिया। पुलिस ने आरोपी को हिरासत में लेकर कोर्ट में चालान पेश किया। 22 गवाहों के बयान के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया।

इसलिए माना गंभीर
कोर्ट ने माना कि हत्यारे ने दो हत्याएं की हैं। उसे पता था कि प्रेमिका गर्भवती है। उसकी हत्या से गर्भस्थ शिशु भी मर जाएगा। इसके बावजूद उसने हत्या की, इसलिए धारा 316 के तहत अधिकतम सजा सुनाई गई।

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