उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। मरीज और परिजनों से अभद्र व्यवहार की आम शिकायत के आरोपी मप्र के जूनियर डॉक्टर सरकार को भी धमकाने से नहीं चूकते। एक बार फिर उन्होंने आंदोलन की धमकी दे डाली है। अपनी छोटी मोटी मांगों के लिए मरीजों को आए दिन मरने छोड़ दिया जाता है। एक बार फिर यही सबकुछ करने की तैयारी है। सवाल यह है कि जब पुलिस जैसी सेवा में हड़ताल की अनुमति नहीं होती तो चिकित्सा सेवा में क्यों। अनपढ़ होते तो बचकानी हरकत मार लेते परंतु ये तो उच्च शिक्षित हैं। जिम्मेदारी समझते क्यों नहीं।
ज्यादातर जूडा पॉवरफुल ब्यूरोक्रेट्स की संतानें हैं, इसलिए सरकार हमेशा इनके प्रति नरम रुख बनाए रखती है। व्यापमं और डीमेट घोटाले से सब परिचित हैं। दुनिया जानती है कि सीबीआई जांच के बाद भी मेडिकल सीटों की नीलामी चलती रही। ऐसे में भगवान जाने, कौन किस रास्ते से सफेद कोट के अंदर आ घुसा है। अब जो पिताजी के पैसे से डॉक्टर बनने आ गया, वो क्या जाने एक मरीज की जान की कीमत क्या होती है। वो तो सुख सुविधाओं का आदि है। सरकार से भी वही चाहता है जो पिताजी से मिलता है। चाहे भी क्यों नहीं, इनमें से कई के पिताजी पॉवर में जो हैं।
जलिए भाजपाईयों जैसे ताने मारना बंद करते हैं। व्यवस्था की बात करते हैं। सरकार ने डॉक्टरों की सेवाओं को विशेष सेवा माना है। उनकी सुरक्षा के लिए प्रोटेक्शन एक्ट बनाया गया है। अत: वो एक विशेष कर्मचारी हो गए हैं। जब वो कर्मचारी विशेष हो गए हैं तो उनकी सेवा के प्रति जिम्मेदारी विशेष क्यों नहीं बनाई गई। यदि दंगा हो जाए तो बुखार में पड़े सिपाही को भी डंडा उठाना पड़ता है, फिर मरणासन्न मरीज के लिए इन डॉक्टरों को खींचकर बाहर क्यों नहीं निकाला जाता।
आखिर कब तक सरकार इन लाड़लों के आगे गिड़गिड़ाती रहेगी। क्यों भूल जाती है सरकार कि हर मरीज भी एक वोट है और उसका परिवार वोटबैंक। असर तो पड़ता ही है ना।