ग्वालियर नगरनिगम में भर्ती घोटाला 1988 से जारी

भोपाल। हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुई जांच में नगरनिगम ग्वालियर में भर्ती घोटाला उजागर हुआ है। यह 1988 से लगातार चलता आ रहा है। कर्मचारियों ने कई तरह के नियमों को तोड़कर नौकरियां हासिल कर लीं। 

जबलपुर हाईकोर्ट के आदेश पर राज्य शासन ने सभी नगर निगमों एवं प्राधिकरणों को सन्‌ 1988 के बाद हुई नियुक्तियों के जांच के आदेश दिए थे। इसी क्रम में सोमवार को निगम कमिश्नर अनय द्विवेदी ने चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया था, जिसके द्वारा तीन दिन की जांच के बाद गुरुवार को निगम कमिश्नर को रिपोर्ट सौंप दी गई है। इसमें 50 अधिकारी एवं कर्मचारियों की नियुक्तियों में नियम की अनदेखी या दस्तावेजों की कमी पाई गई है।

  • ये कमियां पाई गईं:
  • सन्‌ 1988-2000 के बीच की नियुक्तियों में से ज्यादातर में कमियां पाई गईं हैं।
  • सन्‌ 2001 में नगर निगम में भर्ती के नियम बनाए गए थे।
  • नियम नहीं होने से शासन के सर्कुलर के मुताबिक 10 साल दैवेभो के रूप में काम करने वाला परमानेंट नौकरी का दावेदार मान लिया जाता था।
  • निगम के अपने नियम नहीं थे। ऐसे में शासन के नियम मानने चाहिए थे, लेकिन नियमों की अनदेखी करते हुए 5 साल में ही कई अधिकारी एवं कर्मचारियों को स्थायी नियुक्ति दी गई।
  • कुछ अधिकारी एवं कर्मचारी दैवेभो या लिपिक के पद पर पदस्थ थे, लेकिन बाद में डिप्लोमा करके इंजीनियर बन गए। लेकिन उनके इंजीनियर के नियुक्ति पत्र के साथ में पूर्व की नियुक्ति के आदेश नहीं लगाए गए हैं।
  • ऐसे में मूल नियुक्ति कैसे हुई, इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो रही है। दिलचस्प बात यह है कि सभी दस्तावेज संलग्न होने के बाद ही नियुक्ति पत्र जारी होते हैं। ऐसे में चर्चा है कि रिकॉर्ड गायब होने के कारण नोटिस जारी किए गए हैं।


  • अब क्याः
  • जिनके पास नियुक्ति आदेश होंगे, वह जवाब देंगे। इससे निगम को रिकॉर्ड भी मिल जाएगा।
  • पार्क विभाग के ज्यादातर कर्मचारी न्यायालय के आदेश से स्थायी हुए थे। ऐसे में वह कॉपी लगा देंगे।
  • जिनके पास दस्तावेज सुरक्षित नहीं होंगे, उनको जरूर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
  • जो जवाब आएंगे, उनको जांच रिपोर्ट के साथ संलग्न करके भेज दिया जाएगा।
  • यदि शासन जवाब से संतुष्ट नहीं होता है तो सख्त कार्रवाई हो सकती है।


क्या हो सकती है कार्रवाईः
शासन ने नियुक्ति में अनियमितता पाए जाने पर आदेश वापस लेने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में नियुक्ति रद्द हो सकती है या फिर पूर्व के पद पर भेजा जा सकता है।
सेवानिवृत्त होने पर कर्मचारी की पेंशन बंद की जा सकती है।

इनको मिले नोटिसः
पार्क विभागः मुकेश,राजकुमार, रविन्द्र, छोटी बाई, किरन, सरिता, कुंवरबाई, विजय सेन, आरती पांडेय।

जनकार्यः राजीव सिंघल, हसीन अख्तर, अरविंद चतुर्वेदी, महेन्द्र कुमार, प्रेमकुमार पचौरी।

स्वास्थ्य विभाग एवं अन्यः रामू पुत्र महेश, दीपक , कृष्णकांत, अशोक, पूजा, कन्हैया, ब्रह्म कुमार, मिथलेश, लक्ष्मीबाई, ओमी, प्रेमा देवी, शीलाबाई, आशा, लक्ष्मी, नारायण, अशोक, रामकली, प्रदीप , गुड्डू, राजू, कलावती, सोनू खां, बल्लू, सुरेश, कमलेश, सतीश, मुक्ता, दिलीप, दिनेश, भरू, खेमचंद, मुमताज, हरीशचंद्र, शशिकांत शुक्ला( विज्ञापन), सुनीता, धर्मेन्द्र भार्गव।

नोटिस का कारणः
निगम के पास संबंधित कर्मचारियों का रिकॉर्ड ही नहीं है ऐसे में निगम की मंशा है कि नोटिस के बाद अधिकारी-कर्मचारीअपना रिकॉर्ड खुद ही उपलब्ध करा देंगे, जिससे निगम के वरिष्ठ अफसरों के पास भी जवाब तैयार हो जाएगा। यदि रिकॉर्ड नहीं मिलता है तो शासन को इससे अवगत करा दिया जाएगा। ऐसे में निगम अफसर किसी कार्रवाई के दायरे में नहीं आएंगे। हाईकोर्ट के आदेश पर जांच चल रही है। इसलिए कोई भी इस मामले में हाथ फंसाना नहीं चाहता है।

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