ससुराल वालों को तंग कने वाली आरटीआई अपील खारिज

भोपाल। सूचना आयोग ज्यादातर मामलों में लोगों को चाही गई सूचना दिलाता है, लेकिन एक मामले में मप्र सूचना आयोग ने न केवल लोक सूचना अधिकारी की सूचना देने की कार्यवाही को निरस्त कर सूचना देने के अपीलीय अधिकारी के आदेष को खारिज कर दिया, बल्कि अपीलार्थी को आइंदा सूचना के अधिकार का बेजा इस्तेमाल न करने की चेतावनी भी दी।

राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने आरटीआई अधिनियम के दुरूपयोग पर नाराजगी जताते हुए एक पुलिसकर्मी की अपील इस दलील के साथ नामंजूर कर दी कि चाही गई जानकारी आरटीआई अधिनियम की मूल भावना व उद्देश्य के विपरीत है। सुनवाई में सामने आया कि छत्तीसगढ़ पुलिस के सहायक उपनिरीक्षक नितिन दीक्षित ने अपना वैवाहिक रिश्ता बिगड़ जाने पर सास व सालों के खिलाफ आरटीआई लगाकर उनकी व्यक्तिगत जानकारियां मांगना शुरू कर दिया।

सास सुचेता शुक्ला, शासकीय उ.मा.वि. ग्वालियर में व्याख्याता हैं। उनके दोनों बेटे रेल विभाग व सैनिक स्कूल में कर्यरत हैं। बेटों से संबंधित आरटीआई के प्रकरण लोक सूचना अधिकारियों, अपीलीय अधिकारियों व केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा निरस्त किए जा चुके हैं। सुचेता शुक्ला से संबंधित पूरी जानकारी हासिल करने के लिए अपीलार्थी दीक्षित ने आयोग में अपील की।

उसने मांग की कि सुचेता शुक्ला द्वारा लिए गए और नहीं लिए गए समस्त प्रकार के अवकाशों, उनकी उपस्थिति, मुख्यालय छोड़ने की अनुमति, उन्हे किस काम के लिए कब किस कार्यालय भेजा गया आदि से संबंधित सारी जानकारी दिलाई जाए।

आयुक्त आत्मदीप ने इसे कर्मचारी व उसके नियोक्ता के बीच का मसला बताते हुए फैसले में कहा-आरटीआई अधिनियम में मौलिक अधिकार निहित है, जिसमें निजता का अधिकार शामिल है। किसी नागरिक को किसी संस्थान, व्यक्ति को अथवा उसके कामकाज को अनुचित ढंग से प्रभावित करने के लिए इस अधिनियम का उपयोग करने की छूट नहीं दी जा सकती। यह अधिनियम सार्वजनिक क्रियाकलाप में शुचिता, पारदर्शिता एवं जबावदेही को बढ़ावा देकर सुषासन कायम करने तथा लोकतंत्र को स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनाने के पवित्र उद्देष्य से लागू किया गया है। इसका इस्तेमाल किसी से वैमनस्य निकालने के लिए, अनुचित ध्येय के लिए, किसी की निजता का हनन करने के लिए, किसी को तंग करने के लिए अथवा अन्य दुराषयपूर्ण कार्य के लिए नहीं किया जा सकता है। यह अधिनियम इस रूप में प्रयोज्य किए जाने योग्य नहीं है कि कोई व्यक्ति प्रतिषोध/ईष्र्या/राग द्वेष/कलह के अंतर्गत किसी लोक प्राधिकारी से किसी की सूचना देने की अपेक्षा करे।

आयुक्त ने अपीलार्थी को चेतावनी दी कि वह आइंदा ऐसी वैधानिक त्रुटि न करे तथा सूचना के अधिकार का उपयोग जिम्मेदारी की भावना के साथ लोक हित में करें। साथ ही ध्यान रखें कि किसी से खुन्नस निकालने या दुराषयपूर्ण ढंग से निजी हित साधने के लिए आरटीआई अधिनियम के प्रावधान प्रयुक्त किया जाना अधिनियम की भावना एवं उद्देष्य के विपरीत है।

यह है मामलाः आयोग द्वारा पारित आदेष में कहा गया है कि पर (तृतीय) पक्ष सुचेता शुक्ला ने लोक सूचना अधिकारी के समक्ष लिखित असहमति प्रस्तुत की कि उनसे संबंधित जानकारी नितिन दीक्षित को न दी जाए, क्योंकि चाही गई जानकारी पर पक्ष से संबंधित व वैयक्तिक है और उसमें कोई लोकहित नहीं है, इसके बावजूद लोक सूचना अधिकारी ने दीक्षित को सुचेता शुक्ला की कुछ जानकारियां दे दी। पर पक्ष ने इस पर आपत्ति की तथा प्रथम अपीलीय अधिकारी को भी अपनी असहमति से अवगत कराया, किन्तु अपीलीय अधिकारी ने भी पर पक्ष की व्यक्तिगत प्रकृति की जानकारी निःषुल्क देने का आदेष पारित कर दिया, जबकि खुद लोक सूचना अधिकारी ने अपीलीय अधिकारी को लिखा था कि दीक्षित बार-बार इस तरह के आवेदन लगाकर सूचना के अधिकार का बेजा इस्तेमाल कर रहा है। इनकी व्यक्तिगत लड़ाई से विद्यालय का शैक्षिक कार्य व अन्य आवष्यक कार्य प्रभावित हो रहे हैं जो कि आरटीआई अधिनियम का पूर्णतः दुरूपयोग है।

आयोग ने आदेष में कहा है कि पर पक्ष द्वारा धारा 11 के तहत न्याय दृष्टांतों सहित प्रस्तुत की गई असहमति प्राप्त होने के बाद लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी द्वारा पर पक्ष की जानकारी देने की कार्यवाही की गई, जबकि चाही गई जानकारी वैयक्तिक थी, वह सार्वजनिक क्रियाकलाप से संबंधित नहीं थी और उसमें कोई व्यापक लोकहित भी निहित नहीं था। लोक सूचना अधिकारी एवं अपीलीय अधिकारी के लिए यह भी ज्ञात तथ्य था कि अपीलार्थी द्वारा पर पक्ष से संबंध टूट जाने के चलते पर पक्ष से संबंधित व्यक्तिगत जानकारियां बार-बार मांगी जा रही हैं। बावजूद लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी द्वारा पर पक्ष के असहमति पत्र में उठाए मुद्दों पर विचार किए बिना पर पक्ष की व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक करने का रास्ता खोल दिया गया।

आरटीआई अधिनियम की धारा 11 (3) के प्रावधानानुसार सूचना का आवेदन प्राप्त होने के 40 दिन के भीतर यदि पर व्यक्ति को उपधारा 2 के अधीन अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का अवसर दे दिया गया है, तो लोक सूचना अधिकारी इस बारे में विनिष्चय करेगा कि उक्त सूचना या उसके भाग का प्रकटन किया जाए या नहीं। और अपने विनिष्चय की सूचना लिखित में पर व्यक्ति को देग। इस सूचना में यह कथन भी सम्मिलित होगा कि पर व्यक्ति उक्त विनिष्चय के विरूध्द अपील करने का हकदार है। लोक सूचना अधिकारी द्वारा उक्त प्रावधान का पालन नहीं किया गया। लोक सूचना अधिकारी द्वारा पर पक्ष से प्राप्त असहमति पर न्यायिक विवेक से विनिष्चय नहीं किया गया। प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा भी महत्वपूर्ण विधिक पहलू को नजरअंदाज किया गया।

अतः अधिनियम की धारा 8 (1) (जे) एवं धारा 11 के प्रावधानों की अवहेलना करते हुए पारित किए गए लोक सूचना अधिकारी के जानकारी प्रदाय करने के विनिष्चय तथा अपीलीय अधिकारी के आदेष दि. 24/12/2010 को विधिसम्मत न पाते हुए अपास्त किया जाता है। साथ ही लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी को सचेत किया जाता है कि वे भविष्य में ऐसी वैधानिक त्रुटि न करते हुए सूचना के अधिकार का दुरूपयोग न होने दें एवं धारा 8 (1) (जे) एवं धारा 11 के प्रावधानों का पालन सुनिष्चित करें। आयोग ने पर पक्ष की इस दलील से सहमति जताई कि चाही गई जानकारी व्यक्तिगत स्वरूप की है जो लोक क्रियाकलाप से संबंधित नहीं है और जिसमें वृहत्तर लोकहित भी निहित नहीं है। अतः ऐसी जानकारी का प्रकटन धारा 8 (1) (जे) के अंतर्गत बंधनकारी नहीं है और अपीलार्थी का कृत्य सूचना का अधिकार अधिनियम के दुरूपयोग की श्रेणी में आता है। 

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