सागर। हाईकोर्ट जबलपुर ने एस्सेल कंपनी की गई याचिका खारिज कर दी है। एस्सेल ने मई 2015 में मप्र शासन, पूर्व क्षेत्र कंपनी जबलपुर एवं बैंक ऑफ महाराष्ट्र के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा है कि अनुबंध के अनुसार विवाद को निपटाने के लिए एस्सेल को पहले ऑर्बिट्रेशन में जाना चाहिए।
हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एएम खानविलकर एवं जस्टिस संजय यादव की संयुक्त बैंच ने एस्सेल विद्युत वितरण सागर प्रा. लि. की याचिका पर फाइनल सुनवाई करते हुए कहा है कि एस्सेल और पूर्व क्षेत्र बिजली कंपनी जबलपुर के बीच चल रहे बिलिंग की राशि और अन्य विवाद उनके बीच हुए अनुबंध में दिए गए प्रावधान के तहत सुलझाने चाहिए। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि एस्सेल के पास ऑलटरनेटिव रेमेडी है। कांट्रेक्ट में किसी भी तरह के विवाद को सुलझाने के लिए जब व्यवस्था दी गई। इसलिए हाईकोर्ट को एप्रोच करने से पहले ऑर्बिट्रेशन में जाएं। मध्यस्था अधिनियम में भी यही प्रावधान दिए गए हैं। यह बात कहते हुए डबल बैंच ने एस्सेल की याचिका खारिज कर दी । कोर्ट में 35 नंबर पर एस्सेल का केस लगा हुआ था। एस्सेल की ओर से पैरवी अधिवक्ता वी भिड़े, ईशान सोनी ने की है। जबकि पूर्व क्षेत्र बिजली कंपनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ थे।
डिसप्यूट कमेटी में गया था मामला
एस्सेल कंपनी और मप्र पूर्व क्षेत्र बिजली कंपनी के बीच बिजली बिल और बैंक गारंटी जप्त करने के बाद विवाद पहले एसई और सीई स्तर पर बैठकें आयोजित कर सुलझाने का प्रयास किया गया था। बाद में जबलपुर में मप्र पूर्व क्षेत्र बिजली कंपनी के ईडी कामर्शियल स्तर के नेतृत्व में डिस्प्यूट कमेटी गठित की गई थी। लेकिन यहां भी विवाद नहीं सुलझ सका था। इसके बाद कंपनी हाईकोर्ट चली गई थी।
दोनों कंपनियों में यह विवाद है
सागर शहर के नगरीय क्षेत्र में 1 दिसंबर 2012 को एस्सेल ने बिजली वितरण व संधारण की सेवाएं फ्रेंचाइजी के तहत टेकओवर कर ली थी। 2014 के अंत में मुंबई की स्वतत्र ऑडिटर कंपनी की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए एस्सेल ने प्रति यूनिट बिजली के वैल्यूएशन के फार्मूले को गलत बताते हुए भुगतान रोक लिया था। धीरे-धीरे कर यह राशि 18 करोड़ रुपए बकाया हो गया और पूर्व क्षेत्र कंपनी ने एस्सेल की 14 करोड़ 70 लाख की बैंक गारंटी जब्त कर ली थी।
फिलहाल कोर्ट का मेटर नहीं बनता
एस्सेल फ्रेंचाइजी कंपनी है। उसका अनुबंध पूर्व क्षेत्र कंपनी से हुआ है। इसमें दोनों कंपनियों के बीच किसी भी तरह के डिस्प्यूट के निराकरण के लिए प्रावधान दिए गए है। मप्र मध्यस्थता अधिनियम के प्रावधान भी यहीं कहते हैं। एस्सेल हाईकोर्ट में पहुंची जरूर थी, लेकिन उसे ऑर्बिट्रेशन में जाना था। जिस स्टेज पर यह केस हैं उसमें कोर्ट का मेटर नहीं बनता।
सुयश ठाकुर, अधिवक्ता, हाईकोर्ट, जबलपुर